मालवा के राजा विक्रमादित्य एवं भोज परमार

Himmat Singh 08 Nov 2025

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मालवा के प्राचीन परमार शासक- मालवा पर परमारों का ईसा से पूर्व में शासन था। हरनामसिंह चौहान के अनुसार परमार मौर्यवंश की शाखा है। राजस्थान के जाने-माने विद्वान ठाकुर सुरजनसिंह झाझड़ की भी यही मान्यता है। डॉ गौरीशंकर ओझा के अनुसार सम्राट अशोक के बाद मौर्यों की एक शाखा का मालवा पर शासन था (कुछ लोग मौर्य को परमार की शाखा शाखा मानते हैं)। भविष्य पुराण भी मालवा पर परमारों के शासन का उल्लेख करता है। मालवा का प्रसिद्ध राजा गंधर्वसेन था। गन्धर्वसेन का राज्य विस्तार दक्षिणी राजस्थान तक माना जाता है। उसके बाद विक्रमादित्य मालवा के शासक बने।

राजा विक्रमादित्य बहुत ही शक्तिशाली सम्राट थे। उन्होंने शकों को परास्त कर देश का उद्धार किया। वह एक वीर व गुणवान शासक थे जिनका दरबार नवरत्नों से सुशोभित था। ये थे-कालीदास, अमरसिंह, वराहमिहीर, धन्वतरी वररूचि, शकु, घटस्कर्पर, क्षपणक व बेताल भट्ट। उनके शासन में ज्योतिष विज्ञान प्रगति के उच्च शिखर पर था। वैधशाला का कार्य वराहमिहीर देखते थे। उज्जैन तत्कालीन ग्रीनवीच थी जहां से प्रथम मध्यान्ह की गणना की जाती थी। सम्राट विक्रमादित्य का प्रभुत्व सारा विश्व मानता था। काल की गणना विक्रमी संवत् से की जाती थी। राजा विक्रमादित्य जनमानस में बहुत प्रसिद्ध रहा। आज भी इसके नाम से कितनी ही कहानियां, किवदन्तियां जनमानस में प्रचलित हैं। विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर भारतीय जनता पर बड़ा उपकार किया। विक्रमादित्य का दरबार विद्वानों का दरबार था। विद्वानों की राय मे इस समय पुनः कृतयुग का समय आ रहा था। अतः शकों पर विजय के पश्चात विक्रमादित्य ने विद्वानों की राय से कृत संवत् आरंभ किया जो नवी शताब्दी में विक्रम संवत कहलाया। विक्रमादित्य के बाद देवभट्ट, शालीवाहन, शालीहोम, शालीवर्धन, सुविहोम, इंद्रपाल, माल्यवान, शंभूदत्त, भोमराज, वत्सराज, भोजराज, शंभूदत्त, बिंदुपाल, राजपाल, महीनर, शकहंता, शुत्रोह, सोमवर्मा, कानर्वा, रंगपाल, कल्वसी व गंगासी मालवा के शासक हुए। विक्रमादित्य के वंशजों ने 550 ईस्वी तक मालवा पर शासन किया। इसके बाद हुणों ने मालवा से परमारों का राज्य समाप्त कर दिया।

मध्यकालीन मालवा राज्य :-- नवीं-दसवीं शताब्दी में फिर से मालवा में परमार राज्य स्थापित हुआ। परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जयनी (उज्जैन) थी, पर कालान्तर में राजधानी ‘धार’ में स्थानान्तरित कर ली गई। मालवा के परमार शासकों में पहला नाम कृष्णराज (उपेन्द्र) का मिलता है। इसने अपने बाहुबल से एक बड़े स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। इनके बाद बैरीसिंह मालवा के शासक बने। बैरीसिंह का दूसरा पुत्र अबरसिंह था जिसने वागड़ में अपना राज्य स्थापित किया। बेरसी प्रथम के बाद सियक व हुआ। सियक के दो पुत्र मुंज व सिंधुराज थे। वाक्पति (मुंज) उत्पल विक्रम संवत् 1030 में राजा बना। मुंज ने चेदि नरेश युवराज कलचुरी को हराकर त्रिपुरी पर अधिकार किया। किराडू प्रदेश बलिराज से जीतकर अपने पुत्र अरण्यराज को आबू दिया। जालौर अपने पुत्र चंदन को व भीनमाल अपने भतीजे दूसाल को दिया। चालुक्य तेलप ने मुंज को गिरफ्तार कर उसकी हत्या करवा दी। मुंज के बाद उसका भाई सिंधुराज गद्दी पर बैठा। इसने दक्षिण कौशल वागड़ व नागों का राज्य बैरागढ़ जीता। नागों ने अपनी पुत्री शशिप्रभा का विवाह सिंधुराज से किया। सिंधूराज के बाद उसका पुत्र भोज गद्दी पर बैठा।



राजा भोज मालवा के परमारों में सबसे अधिक ख्याति प्राप्त शासक हुआ। राजा भोज के नाम से आज भी जनमानस में कई किवदन्तियां प्रसिद्ध हैं। मलयपर्वत से दक्षिण तक इसका विस्तृत राज्य था। राजा भोज स्वयं विद्या रसिक एवं विद्वान था उसने सरस्वती, कण्ठाभरण, राज्यमृगांक, श्रृंगारमंजरी, कला आदि ग्रंथ लिखे तथा उसके दरबारी विद्वानों ने भी भोजप्रबंध, चिंतामणि आदि ग्रंथ लिखे। कहा जाता है कि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था, तब उसका नाम भोजपाल नगर था। जो कि कालान्तर में भूपाल और फिर भोपाल हो गया। राजा भोज ने भोजपाल नगर के पास ही एक समुद्र के समान विशाल तालाब भोपाल ताल का निर्माण कराया था, जो पूर्व और दक्षिण में भोजपुर के विशाल शिव मंदिर तक जाता था।



राजा भोज का उत्तराधिकारी जयसिंह हुआ। इसके उत्तराधिकारी उदादित्य ने ग्वालियर के पास उदयपुर बसाया। उदादित्य के तीन पुत्र लक्ष्मीदेव, नरवर्मा व जगदेव थे। जगदेव जनमानस में जगदेव पंवार के नाम से प्रसिद्ध है, जिसने अपने शीश का दान दिया। उदादित्य के बाद लक्ष्मीदेव गद्दी पर बैठे व लक्ष्मीदेव का उत्तराधिकारी उसका भाई नरवर्मा हुआ। नरवर्मा के बाद क्रमशः यशोवर्मा, जयवर्मा, अजयवर्मा, विंध्यवर्मा ,सुभट्टवर्मा, अर्जुनवर्मा, देवपाल आदि राजा हुए। इसी वंश में बैरीसिंह द्वितीय हुआ जिसने गौड़ प्रदेश में बगावत के समय हूणों से मुकाबला किया और विजय प्राप्त की। वि सं 1348 में फिरोज शाह खिलजी ने उज्जैन के मंदिरों को तोड़ा व मालवा का पूर्वी हिस्सा छीन लिया। फिर मोहम्मद तुगलक के समय मालवा का परमार राज्य समाप्त हो गया।
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Published on 08 Nov 2025