मेजर शैतान सिंह भाटी: रेज़ांग ला के अमर वीर

Himmat Singh 10 Nov 2025

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मेजर शैतान सिंह भाटी: रेज़ांग ला के अमर वीर

भारत माता के सच्चे सपूत मेजर शैतान सिंह भाटी का नाम देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अतुलनीय वीरता, साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया। अपने प्राणों की आहुति देकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारत के सैनिक कभी पीछे नहीं हटते। उनके इसी अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया — जो भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है।

🪔 प्रारंभिक जीवन

मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के फलोदी ज़िले के बंसार गाँव में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी भी भारतीय सेना में अधिकारी थे और उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (OBE) से सम्मानित किया गया था।

शैतान सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजपूत हाई स्कूल, जोधपुर से प्राप्त की। वे न केवल एक अनुशासित विद्यार्थी थे बल्कि एक कुशल फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में भी जाने जाते थे। 1943 में उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और आगे की शिक्षा के लिए जसवंत कॉलेज, जोधपुर में प्रवेश लिया, जहाँ से उन्होंने 1947 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

🎖️ सैन्य जीवन की शुरुआत

1 अगस्त 1949 को शैतान सिंह भाटी जोधपुर राज्य बलों में एक अधिकारी के रूप में शामिल हुए। जब जोधपुर रियासत का भारत में विलय हुआ, तो उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया।

उन्होंने अपने सैन्य करियर में कई महत्वपूर्ण अभियानों में हिस्सा लिया —

नागा हिल्स ऑपरेशन, और

1961 में गोवा मुक्ति अभियान।

उनकी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए उन्हें 11 जून 1962 को मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया।

⚔️ भारत-चीन युद्ध और रेज़ांग ला का रण

1962 में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चरम पर था। इस दौरान भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं बटालियन को लद्दाख के चुषुल सेक्टर में तैनात किया गया। मेजर शैतान सिंह की कमान में सी कंपनी को रेज़ांग ला दर्रे की रक्षा का जिम्मा मिला।

यह क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 16,000 फीट की ऊँचाई पर था — जहाँ तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे रहता था। इसके बावजूद भारतीय जवानों ने हर हाल में अपने मोर्चे पर डटे रहने का संकल्प लिया।

🌄 18 नवम्बर 1962: वीरता की पराकाष्ठा

सुबह लगभग 5 बजे, घने कोहरे के बीच चीनी सेना ने अचानक हमला बोल दिया। भारतीय सैनिकों ने पूरी शक्ति से मुकाबला किया और लाइट मशीन गन, राइफल, मोर्टार तथा ग्रेनेड से दुश्मन को भारी नुकसान पहुँचाया।

पहले हमले में असफल होने के बाद, चीनी सेना ने पीछे से और अधिक सैनिकों के साथ फिर से हमला किया। लगभग 1300 से अधिक चीनी सैनिकों के सामने केवल 120 भारतीय वीर थे — लेकिन उन्होंने एक इंच भी पीछे हटने से इनकार कर दिया।

मेजर शैतान सिंह स्वयं पोस्ट से पोस्ट तक बिना किसी सुरक्षा के दौड़ते रहे, जवानों का हौसला बढ़ाते रहे और मोर्चों का पुनर्गठन करते रहे। अंततः वे गंभीर रूप से घायल हुए, लेकिन अपने आख़िरी क्षण तक युद्धक्षेत्र नहीं छोड़ा। उन्होंने वहीं रणभूमि में वीरगति प्राप्त की।

इस युद्ध में 120 में से 109 भारतीय सैनिक शहीद हुए, लेकिन उन्होंने सैकड़ों चीनी सैनिकों को मार गिराया। यह युद्ध भारतीय सेना के इतिहास में अमर अध्याय बन गया।

🇮🇳 सम्मान और विरासत

मेजर शैतान सिंह भाटी की अमर वीरता को नमन करते हुए, भारत सरकार ने उन्हें 1963 में मरणोपरांत "परमवीर चक्र" से सम्मानित किया — यह सम्मान 18 नवम्बर 1962 से प्रभावी माना गया।

उनका पार्थिव शरीर बाद में जोधपुर लाया गया, जहाँ पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। आज भी रेज़ांग ला युद्ध स्मारक और जोधपुर में उनका स्मारक हर भारतीय को प्रेरित करता है।

🌺 निष्कर्ष

मेजर शैतान सिंह भाटी केवल एक सैनिक नहीं थे — वे भारत की शौर्य परंपरा के जीवंत प्रतीक थे। रेज़ांग ला की बर्फ़ीली वादियों में उनकी वीरता आज भी हर भारतीय के दिल में जोश भर देती है।

उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि —

"जब बात मातृभूमि की रक्षा की हो, तो वीर सपूत अपने प्राणों की आहुति देने में भी गर्व महसूस करते हैं।"

जय हिंद 🇮🇳
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Published on 10 Nov 2025