कछवाहा वंश का इतिहास
Mohit • 07 Nov 2025
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कर्नल टॉड ने इन्हें राम के पुत्र कुश के वंशज होने से कुशवाहा नाम पडना और बाद में बिगडकर कछवाहा हो जाना बताया है। लेकिन किसी भी प्राचीन लेख में इनको कुशवाहा नहीं लिखा गया है, वरन् इन्हें कच्छपघात या कच्छपारि ही लिखा गया है। ग्वालियर और नरवर के कछवाहा राजाओं के कुछ संस्कृत शिलालेख ने उन्हें कच्छपघात या कच्छपार लिखा है, जो प्राकृत में कछपारि और फिर सामान्य बोलचाल में कछवाहा हो गया। कछवाहां की कुल देवी कछवाही (कच्छवाहिनी) थी। अतः इसी कारण इनका नाम कछवाहा हो जाना संभव है।
महाकवि सूर्यमल मिश्रण का मत है कि कुश का वंशज कुर्म था, जिससे कछवाहे कुर्मा व कुर्म भी कहलाते है। जयपुर के राजाओं के कुछ शिलालेखों (मानसिंह वि. सं. 1658 सांगानेर, रायसाल आदिनाथ मंदिर, लीली अलवर राज्य वि. सं. 1803) में अपने को कुर्मवशी लिखा है। पृथ्वीराज रासों ने भी आमेर के राजा पुज्जुन (पंजनदेव) को कुर्म लिखा है। अतः कुर्म व कछवाहा एक ही जाति है।
महाभारत में नागवंशी कच्छप जाति का क्षत्रियों से युद्ध होने का विवरण मिलता है। (महा आदिपर्व श्लोक 71 ) नागों का राज्य ग्वालियर के आसपास था इनकी राजधानी पदमावती थी जो अब नरवर कहलाती है। इस क्षेत्र में बहने वाली उत्तर सिंध व पाहूज के बीच का क्षेत्र अभी भी कछवाहाधार कहलाता है। कहा जाता है कि कछवाहों के पूर्वज अयोध्या छोड़ने के बाद रोहतासगढ़ और वहाँ से नरवर चले गये। नरवर में आकर कच्छपों से युद्ध कर उन्हें हराया और इसी कारण ये कच्छपारि कच्छपघात, कच्छपहन या कच्छपहा कहलाये हो। यही शब्द बाद में बिगड़कर अब कछवाहा कहलाने लगा हो।
क्षत्रियों के प्रसिद्ध 36 राजवंशों में कछवाहा वंश के कश्मीर, राजपुताने (राजस्थान) में अलवर, जयपुर, मध्यप्रदेश में ग्वालियर, राज्य थे। मईहार, अमेठी, दार्कोटी आदि इनके अलावा राज्य, उडीसा मे मोरमंज, ढेकनाल, नीलगिरी, बऊद और महिया राज्य कछवाहो के थे। कई राज्य और एक गांव से लेकर पाँच-पाँच सौ ग्राम समुह तक के ठिकानें, जागीरे और जमींदारीयां थी. राजपूताने में कछवाहो की 12 कोटडीया और 53 तडे प्रसिद्ध थी.
बिहार में कछवाहा वंश का इतिहास - महाराजा कुश के वंशजो की एक शाखा अयोध्या से चलकर साकेत आयी और साकेत से, बिहार मे सोन नदी के किनारे रोहिताशगढ़ (बिहार) आकर वहा रोहताशगढ किला बनाया।
मध्यप्रदेश में कछवाहा वंश का इतिहास - महाराजा कुश के वंशजो की एक शाखा फिर बिहार के रोहताशगढ से चलकर पदमावती (ग्वालियर) मध्यप्रदेश मे आये। नरवर (ग्वालियर ) के पास का प्रदेश कच्छप प्रदेश कहलाता था और वहा आकर कछवाह वंशज के एक राजकुमार तोरुमार ने एक नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर इस क्षेत्र को अपने कब्जे में किया। क्योकि यहा पर कच्छप नामक नागवंशीय क्षत्रियो की शाखा का राज्य था । (महाभारत आदि पर्व श्लोक 71) नागो का राज्य ग्वालियर के आसपास था । इन नागो की राजधानी पद्मावती थी, पदमावती राज्य पर अपना अधिकार करके सिहोनिया गाँव को अपनी सर्वप्रथम राजधानी बनायी। यह मध्यप्रदेश मे जिला मुरैना मे पड़ता है।
ग्वालियर के कच्छवाहा - कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली। सुरजपाल से 84 पीढ़ी बाद राजा नल हुवा जिसने नलपुर नामक नगर बसाया और नरवर के प्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण कराया। नरवर में नल का पुत्र ढोला (सल्ह्कुमार) हुवा जो राजस्थान में प्रचलित ढोला मारू के प्रेमाख्यान का प्रसिद्ध नायक है। उसका विवाह पूगल कि राजकुमारी मारवणी के साथ हुवा था। ढोला के पुत्र लक्ष्मण हुवा, लक्ष्मण का पुत्र भानु और भानु के परम प्रतापी महाराजाधिराज बज्रदामा हुवा जिसने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धार कर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जीत लिया। बज्रदामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के दो पुत्र किर्तिराज व सुमित्र हुए, किर्तिराज को ग्वालियर व सुमित्र को नरवर का राज्य मिला। सुमित्र से कुछ पीढ़ी बाद नरवर (ग्वालियर) राज्य के राजा ईशदेव जी थे और राजा ईशदेव जी के पुत्र सोढदेव के पुत्र, दुल्हराय जी नरवर (ग्वालियर) राज्य के अंतिम राजा थे। सोढदेव की मृत्यु व दुल्हेराय के गद्दी पर बैठने की तिथि माघ शुक्ला 7 वि.संवत 1154 है I ज्यादातर इतिहासकार दुल्हेराय जी का राजस्थान में शासन काल वि.संवत 1154 से 1184 के मध्य मानते है।