राठौड़ वंश
Himmat Singh • 02 Nov 2025
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गरुड़ खगां, लंका गढां, राजकुलां राठौड़ !
(जिस तरह सभी प्रदेशों में ब्रज प्रदेश, वनों में चंदन वन, पहाड़ों में सुमेरु पर्वत, पक्षियों मे गरुड़ व गढ़ों में लंका गढ़, मोड़ (मुकुट) की तरह है, या सर्वोच्च है ! उसी प्रकार राठौड़ कुल सभी राजकुलों का मुकुट है)
भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज अयोध्या के अंतिम सूर्यवंशी राजा सुमित्र के एक पुत्र विश्वराज के वंशज *राठौड़* हुए। सुमित्र के दूसरे पुत्र कूर्म के वंशज *कछवाह* कहलाये। सुमित्र के तीसरे पुत्र वज्रनाभ के वंशज आगे चलकर *गुहिलोत* कहलाये। (कुछ इतिहासकार कच्छवाहों की उत्पत्ती कुश के नाम से भी मानते हैं) !
राठौड़ नाम की उत्पत्ति
इसमे इतिहासकारो के अलग-अलग मत हैं। कुछ का कहना है कि ‘राजा सुमित्र के वंशज मल्लराय ने राठेश्वरी देवी की आराधना की व उनके आशीर्वाद से प्राप्त पुत्र का नाम राष्ट्रवीर रखा, जिससे राठौड़ वंश नाम हुआ।'
रविवंश में अवतंश एक भूप राष्ट्रवीर भयो,
तस नाम सों संसार मं राठवर कुल उत्पन्न हुयो !
चंद्रहांस शत्रु नाश कर चहुं दिश में शासन कियो,
अयोध्या रोहिताश तारातम्बोल मुलतान को राजकियो !
जबकि दूसरा मत है कि देवताओं के धार्मिक मापदण्डों पर खरा न उतरने पर ढूंढी राज गणेश को कन्नौज जाना पड़ा। ‘कन्नौज‘ उस समय राष्ट्रीय देश था, वे वहां के राजा हुए और उनके वंशज राष्ट्रोर कहलाये। इसी वंश में आगे राजा जयचंद गहरवार (राठौर) प्रसिद्ध हुऐ हैं।
एक अन्य कहानी भी प्रचलित है कि महाभारत काल में राजा विश्वतमान के पुत्र बृहदबल को कुरुक्षेत्र युद्ध मे जाते समय रास्ते मे गौतम ऋषि मिले। सन्तानहीन राजा को गौतम ऋषि ने आशीर्वाद स्वरूप सन्तान हेतु मन्त्र सिद्ध जल रानी को पिलाने हेतू दिया। राजा ने शराब के नशे में प्यास लगने पर गलती से वह जल स्वंय पी लिया। ऋषि के मंत्र बल से राजा के शरीर मे पनपे बालक को राजा की राठ (रीढ़) फाड़ कर निकाल गया। जिससे उस बालक का नाम राठौड पड़ा। लेकिन यह विश्वसनीय नहीं है।
राठौड़ शब्द "राष्ट्रकूट" शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है "देश के सरदार" या "क्षेत्रीय इकाई का अधिकारी". यह शब्द संस्कृत के दो शब्दों "राष्ट्र" (देश) और "कूट" (सरदार) से मिलकर बना है. राष्ट्रकूट राजवंश ने 753 ईस्वी से 973 ईस्वी तक दक्षिण भारत के क्षेत्रों पर शासन किया.
क्षत्रियों के 36 कुलों में राठौड़ की गणना की जाती है। सबसे पहले विक्रम संवत 1205 की कल्हण की ”राजतरंगिणी” में क्षत्रियों के 36 कुलों का उल्लेख मिलता है| यहाँ ”पृथ्वीराज रासो” की उन पंक्तियों का उल्लेख किया जा रहा है जिनमें उन 36 कुलों के नाम गिनाये गए हैं –
"रवि ससि जादव वंस ककटस्थ परमार सदावर!
चाहुवान चालुक्य छन्द सिलार अभीयर !!
दोयमत मकवान गुरुअ गोहिल गोहिलपुत !
चापोत्कट परिहार राव राठौर रोसजुत !!
देवरा टांक सैंधव अणिग योतिक प्रतिहार दघिषत !
कारटपाल कोटपाल हूल हरित गोरकला[मा] षमट!!
धन [धान्य] पालक निकुंभवार, राजपाल कविनीस!
कालच्छुरकै आदि दे बरने बंस छतीस !!”
ये 36 कुल सूर्यवंश, चन्द्रवंश एवं अन्य वंशों में विभक्त हैं।
क्षत्रिय वर्ण के अन्तर्गत अनेक जातियों का जन्म हुआ। इन जातियों में ”राठौर” जाति प्रमुख है क्योकि इसका बहुत प्राचीन एवं विशाल इतिहास है। इस जाति में अनेक राजा और महाराजा हुए जो बडे शक्तिशाली एवं प्रतापी थे। ये गहरवार, राष्ट्रवर, राष्ट्रकूट एवं राष्ट्रिक नामों से भी जाने गये।
बलहट बंका देवड़ा, करतब बंका गौड़ !
हाड़ा बंका गाढ मं, रण बंका राठौड़ !!
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