मेवाड़ राज्य

Himmat Singh 08 Nov 2025

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गुहादित्य ने ईस्वी सन् 566 के लगभग ईडर में अपना राज्य स्थापित किया। इनके वंशज भोज, महेंद्र 1, नाग, शील, अपराजित तथा महेंद्र 2 हुए। अपराजित भीलों के विद्रोह में मारे गए तथा उनके तीन वर्षीय पुत्र बप्पा रावल (काल भोज) की नागर वंशीय ब्राह्मणों ने रक्षा की। बप्पा रावल बचपन में हरित ऋषि की सेवा में रहकर श्री एकलिंग जी की पूजा किया करते थे। तभी से गुहिलोतों के इष्टदेव *श्री एकलिंग जी* माने जाने लगे। बड़े होकर बाप्पा रावल ने हरित ऋषि के आदेश से 734 ईस्वी में मान मोरी (चित्तौड़ के संस्थापक चित्ररांगद मोरी के वंशज) से *चित्तौड़गढ़* जीत लिया व रावल की उपाधि धारण की।



बप्पा ने सन 734 ई० में मोर्य वंशीय राजा चित्रांगद (मान मोरी) परमार से चित्तौड की सत्ता छीन कर मेवाड में गहलौत वंश के शासक का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त किया। इनका काल सन 734 ई० से 753 ई० तक था। इसके बाद के शासकों के नाम और समय काल निम्न था –

रावल बप्पा ( काल भोज ) – 734 ई० मेवाड राज्य के गहलौत शासन के सूत्रधार।
रावल खुमान – 753 ई०
मत्तट – 773 – 793 ई०
भर्तभट्त – 793 – 813 ई०
रावल सिंह – 813 – 828 ई०
खुमाण सिंह – 828 – 853 ई०
महायक – 853 – 878 ई०
खुमाण तृतीय – 878 – 903 ई०
भर्तभट्ट द्वितीय – 903 – 951 ई०
अल्लट – 951 – 971 ई०
नरवाहन – 971 – 973 ई०
शालिवाहन – 973 – 977 ई०
शक्ति कुमार – 977 – 993 ई०
अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई०
शुची वरमा – 1007- 1021 ई०
नर वर्मा – 1021 – 1035 ई०
कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई०
योगराज – 1051 – 1068 ई०
वैरठ – 1068 – 1088 ई०
पाल – 1088 – 1103 ई०
वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई०
विजय सिंह – 1107 – 1127 ई०
अरि सिंह – 1127 – 1138 ई०
चौड सिंह – 1138 – 1148 ई०
विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई०
रण सिंह ( कर्ण सिंह ) – 1158–1168 ई०
क्षेमसिंह – 1168 –1172 ई०
सामंत सिंह – 1172 –1179 ई०
(क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के सोनगरा शासक कीर्तिपाल चौहान ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। )

कुमार सिंह – 1179 –1191 ई०
मंथन सिंह – 1191 –1211 ई०
पद्म सिंह – 1211 –1213 ई०
जैत्र सिंह – 1213–1261 ई०
तेज सिंह -1261 –1273 ई०
समर सिंह – 1273 –1301 ई०
(समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं)

रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) – इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।
अजय सिंह ( 1303 –1326 ई० ) – हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे किन्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे।
महाराणा हमीर सिंह ( 1326 –1364 ई० ) – हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण की । इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।
महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 –1382 ई० )
महाराणा लाखासिंह ( 1382 –1421 ई० ) – योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।
महाराणा मोकल ( 1421 –1433 ई० )
महाराणा कुम्भा ( 1433 –1469 ई० ) – इन्होने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि योग्य प्रशासक, सहिष्णु, किलों और मन्दिरों के निर्माण के रुप में ही जाने जाते हैं। कुम्भलगढ़ इन्ही की देन है. इनके पुत्र उदा ने इनकी हत्या करके मेवाड के गद्दी पर अधिकार जमा लिया।
महाराणा उदा ( उदय सिंह ) ( 1468 –1473 ई० ) – महाराणा कुम्भा के द्वितीय पुत्र रायमल, जो ईडर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, आक्रमण करके उदय सिंह को पराजित कर सिंहासन की प्रतिष्ठा बचा ली। अन्यथा उदा पांच वर्षों तक मेवाड का विनाश करता रहा।
महाराणा रायमल ( 1473 –1509 ई० ) – सबसे पहले महाराणा रायमल के मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन को पराजित किया और पानगढ, चित्तौड्गढ और कुम्भलगढ किलों पर पुनः अधिकार कर लिया पूरे मेवाड को पुनर्स्थापित कर लिया। इसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि कुछ समय के लिये बाह्य आक्रमण के लिये सुरक्षित हो गया। लेकिन इनके पुत्र संग्राम सिंह, पृथ्वीराज और जयमल में उत्तराधिकारी हेतु कलह हुआ और अंततः दो पुत्र मारे गये। अन्त में संग्राम सिंह गद्दी पर गये।
महाराणा सांगा ( संग्राम सिंह ) ( 1509 –1527 ई० ) – महाराणा सांगा उन मेवाडी महाराणाओं में एक था जिसका नाम मेवाड के ही वही, भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है। महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड की सीमा का दूर – दूर तक विस्तार हुआ। महाराणा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतीज्ञ, कुश्ल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्शी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है। जिसके कारण आज मेवाड के उच्चतम शिरोमणि शासकों में इन्हे जाना जाता है।
महाराणा रतन सिंह ( 1528 –1531 ई० )
महाराणा विक्रमादित्य ( 1531 –1534ई० ) – यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ कर्मावती सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने करके 1534 – 1537 तक मेवाड पर शासन किया। लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली। इसी समय सिसोदिया वंश के उदय सिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की जान देकर भी बचा लिया और मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध हो गई।
महाराणा उदय सिंह ( 1537 –1572 ई० ) – मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़गढ़ से उदयपुर लेकर आये. गिर्वा की पहाड़ियों के बीच उदयपुर शहर इन्ही की देन है. इन्होने अपने जीते जी गद्दी ज्येष्ठपुत्र जगमाल को दे दी, किन्तु उसे सरदारों ने नहीं माना, फलस्वरूप छोटे बेटे प्रताप को गद्दी मिली.
महाराणा प्रताप ( 1572 -1597 ई० ) – इनका जन्म 9 मई 1540 ई० मे हुआ था। राज्य की बागडोर संभालते समय उनके पास न राजधानी थी न राजा का वैभव, बस था तो स्वाभिमान, गौरव, साहस और पुरुषार्थ। उन्होने तय किया कि सोने चांदी की थाली में नहीं खाऐंगे, कोमल शैया पर नही सोयेंगे, अर्थात हर तरह विलासिता का त्याग करेंगें। धीरे–धीरे प्रताप ने अपनी स्थिति सुधारना प्रारम्भ किया। इस दौरान मान सिंह अकबर का संधि प्रस्ताव लेकर आये जिसमें उन्हे प्रताप के द्वारा अपमानित होना पडा। परिणाम यह हुआ कि 21 जून 1576 ई० को हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर और प्रताप का भीषण युद्ध हुआ। जिसमें 14 हजार राजपूत मारे गये। परिणाम यह हुआ कि वर्षों प्रताप जंगल की खाक छानते रहे, जहां घास की रोटी खाई और निरन्तर अकबर सैनिको का आक्रमण झेला, लेकिन हार नहीं मानी। ऐसे समय भीलों ने इनकी बहुत सहायता की। अन्त में भामा शाह ने अपने जीवन में अर्जित पूरी सम्पत्ति प्रताप को देदी। जिसकी सहायता से प्रताप NE चित्तौडगढ को छोडकर अपने सारे किले 1588 ई० में मुगलों से छिन लिया। 19 जनवरी 1597 में चावंड में प्रताप का निधन हो गया।
महाराणा अमर सिंह -(1597 –1620 ई० ) – प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। अंत में मुग़लों के लगातार हो रहे आक्रमणों से प्रजा और मेवाड़ राज्य को क्षति होने लगी, तब पुत्र कर्ण सिंह और अन्य सामन्त-सरदारों के कहने पर महाराणा अमर सिंह ने मुग़लों से सन्धि की और साथ ही यह भी साफ किया कि मेवाड़ महाराणा कभी भी मुग़ल दरबार में उपस्थित नही होंगे। केवल राजकुमार ही अपनी उपस्थिती वहाँ देंगे । इस सन्धि के बाद महाराणा अमर सिंह अन्दर से टूट गए, अपने पिता महाराणा प्रताप जी को दिया वचन वे निभाने में असफल हो गए थे। इसी शोक में उन्होने मेवाड़ की गद्दी छोड़ दी थी। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है।
महाराणा कर्णसिंह (1620 –1628 ई० ) – इन्होनें मुगल शासकों से संबंध बनाये रखा और आन्तरिक व्यवस्था सुधारने तथा निर्माण पर ध्यान दिया।
महाराणा जगत सिंह (1628 –1652 ई० ) - शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) को अपना “पगड़ी बदल” भाई बनाया और उन्हें अपने यहाँ पनाह दी।
महाराणा राजसिंह (1652 -1680 ई० ) – यह मेवाड के उत्थान का काल था। इन्होने औरंगजेब से कई बार लोहा लेकर युद्ध में मात दी। इनका शौर्य पराक्रम और स्वाभिमान महाराणा प्रताप जैसे था। इनकों राजस्थान के राजपूतों का एक गठबंधन, राजनितिक एवं सामाजिक स्तर पर बनाने में सफ़लता अर्जित हुई। जिससे मुगल से संगठित लोहा लिया जा सके। महाराणा के प्रयास से अंबेर, मारवाड और मेवाड में गठबंधन बन गया। वे मानते हैं कि बिना सामाजिक गठबंधन के राजनीतिक गठबंधन अपूर्ण और अधूरा रहेगा। अतः इन्होने मारवाह और आमेर से खानपान एवं वैवाहिक संबंध जोडने का निर्णय ले लिया। राजसमन्द झील एवं राजनगर इन्होने ही बसाया।
महाराणा जय सिंह (1680–1698) – जयसमंद झील का निर्माण करवाया.
महाराणा अमर सिंह द्वितीय (1698 –1710) – इसके समय मेवाड की प्रतिष्ठा बढी और उन्होनें कृषि पर ध्यान देकर किसानों को सम्पन्न बना दिया।
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710 –1734) – महाराणा संग्राम सिंह दृढ और अडिग, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय, अनुशासित, आदर्शवादी थे। इन्होने 18 बार युद्ध किया तथा मेवाड राज्य की प्रतिष्ठा और सीमाओं को न केवल सुरक्षित रखा वरन उनमें वृध्दि भी की।
महाराणा जगत सिंह द्वितीय ( 1734 –1751 ई० ) – ये एक अदूरदर्शी और विलासी शासक थे। इन्होने जलमहल बनवाया।
महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय ( 1751 –1754 ई० )
महाराणा राजसिंह द्वितीय ( 1754 –1761 ई० )
महाराणा अरिसिंह द्वितीय ( 1761 –1773 ई० )
महाराणा हमीर सिंह द्वितीय ( 1773 –1778 ई० ) – इनके कार्यकाल में सिंधिया और होल्कर ने मेवाड राज्य को लूटपाट करके तहस – नहस कर दिया।
महाराणा भीमसिंह ( 1778 –1828 ई० ) – इनके कार्यकाल में भी मेवाड आपसी गृहकलह से दुर्बल होता चला गया। 13 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और मेवाड राज्य में समझौता हो गया। अर्थात मेवाड राज्य ईस्ट इंडिया के साथ चला गया।मेवाड के पूर्वजों की पीढी में बप्पारावल, कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे तेजस्वी, वीर पुरुषों का प्रशासन मेवाड राज्य को मिल चुका था। प्रताप के बाद अधिकांश पीढियों में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे, निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था। ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया।
महाराणा जवान सिंह (1828 –1838 ई० ) – निःसन्तान। सरदार सिंह को गोद लिया ।
महाराणा सरदार सिंह (1838 –1842 ई० ) – निःसन्तान। भाई स्वरुप सिंह को गद्दी दी.
महाराणा स्वरुप सिंह (1842 –1861 ई० ) – इनके समय 1857 की क्रान्ति हुई। इन्होने विद्रोह कुचलने में अंग्रेजों की मदद की।
महाराणा शंभू सिंह (1861 –1874 ई० ) –1868 में घोर अकाल पडा। अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढा।
महाराणा सज्जन सिंह ( 1874 –1884 ई० ) – बागोर के महाराज शक्ति सिंह के कुंवर सज्जन सिंह को महाराणा का उत्तराधिकार मिला। इन्होनें राज्य की दशा सुधारनें में उल्लेखनीय योगदान दिया।
महाराणा फ़तह सिंह ( 1883 –1930 ई० ) – सज्जन सिंह के निधन पर शिवरति शाखा के गजसिंह के अनुज एवं दत्तक पुत्र फ़तेहसिंह को महाराणा बनाया गया। फ़तहसिंह कुटनीतिज्ञ, साहसी स्वाभिमानी और दूरदर्शी थे। संत प्रवृति के व्यक्तित्व थे. इनके कार्यकाल में ही किंग जार्ज पंचम ने दिल्ली को देश की राजधानी घोषित करके दिल्ली दरबार लगाया. महाराणा दरबार में नहीं गए .
महाराणा भूपाल सिंह (1930 –1955 ई० ) – इनके समय में भारत को स्वतन्त्रता मिली और भारत या पाक मिलने की स्वतंत्रता। भोपाल के नवाब और जोधपुर के महाराज हनुवंत सिंह पाक में मिलना चाहते थे और मेवाड को भी उसमें मिलाना चाहते थे। इस पर उन्होनें कहा कि मेवाड भारत के साथ था और अब भी वहीं रहेगा। यह कह कर वे इतिहास में अमर हो गये। स्वतंत्र भारत के वृहद राजस्थान संघ के भूपाल सिंह प्रमुख बनाये गये।
महाराणा भगवत सिंह ( 1955 –1984 ई० )
श्रीजी अरविन्दसिंह एवं महाराणा महेन्द्र सिंह (1984 ई० से निरंतर..)


इस तरह 556 ई० में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई बाद में वही सिसोदिया वंश के नाम से जाना गया । जिसमें कई प्रतापी राजा हुए, जिन्होने इस वंश की मानमर्यादा, इज्जत और सम्मान को न केवल बढाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोडा । यह वंश कई उतार-चढाव और स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आज भी अपने गौरव और श्रेष्ठ परम्परा के लिये जाना पहचाना जाता है। धन्य है वह मेवाड और धन्य सिसोदिया वंश जिसमें ऐसे ऐसे अद्वीतिय देशभक्त दिये।
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Himmat Singh

Published on 08 Nov 2025