तनसिंह जी

Himmat Singh 07 Nov 2025

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संपर्क में रहकर अपने उद्देश्य के अनुरूप उपयुक्त प्रणाली हेतु चिंतन करते रहे। इस दौरान उन्होंने नित्य, निरंतर और नियमित अभ्यास की एक कार्यप्रणाली की रूपरेखा तैयार की और जयपुर लौटकर 21 दिसंबर 1946 की रात्रि अपने उस समय के सहयोगियों से संवाद कर 22 दिसंबर 1946 को 1944 में स्थापित संघ के स्थान पर नवीन कार्य प्रणाली के साथ वर्तमान में चल रहे श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। 25 दिसंबर से 31 दिसंबर 1946 तक जयपुर में ही प्रथम प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। इस प्रकार पूज्य श्री ने क्षत्रिय जाति के स्वाभाविक गुणों को जागृत कर उन्हें सृष्टि का उपयोगी अंग बनाकर विश्वात्मा के दृष्टिकोण से संचालित करने का नूतन मार्ग प्रतिष्ठापित किया। पूज्य तनसिंह जी इसके प्रथम संचालक निर्वाचित हुए। 1949 में आप पुनः संघप्रमुख निर्वाचित हुए। 1954 में स्वयं निर्वाचन प्रक्रिया से अलग रहकर अपने निकटतम सहयोगी श्री आयुवान सिंह हुडील को संघप्रमुख बनवाया। 1959 में भी आपने ऐसा ही किया। आयुवान सिंह जी द्वारा पूर्ण कालिक राजनीति में जाने के लिए त्यागपत्र देने के बाद आप पुनः संघप्रमुख चुने गए एवं 1969 तक संघप्रमुख रहे। 1969 में आपने नवीन नेतृत्व को उभारते हुए अपने श्रेष्ठतम अनुयायी श्री नारायणसिंह जी रेड़ा को संघप्रमुख बनाया एवं आगामी दस वर्ष तक संघ के नये नेतृत्व को संरक्षक की भांति सींचा। आपने अपने जीवनकाल में संघ के 192 शिविर किये। 23 दिसम्बर 1978 से 1 जनवरी 1979 तक रतनगढ़ में सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आपका अंतिम शिविर था। पूज्य श्री ने 1949 में चौपासनी विद्यालय के अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। 1948 में ही गांधीजी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध के विरुद्व हुए आन्दोलन में भी आप शामिल हुए एवं स्वैच्छिक गिरफ्तारी दी। सरकार द्वारा दुर्भावना से प्रेरित होकर बनाये गए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के विरुद्व उस समय के संघप्रमुख आयुवानसिंह जी के निर्देश पर 1955-56 में हुए दोनों भूस्वामी आंदोलनों में आपने नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति के रुप में भाग लिया एवं जेल गए। अन्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरु के साथ हुई समझौता वार्ता में समाज का पक्ष रखा। पूज्य श्री ने अपने अनुगामियों के लिए अनुठा साहित्य भी रचा। आपकी 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जो आज पथप्रेरक के रुप में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। इसके अलावा आपने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सैकडों लेख लिखे। स्वयं ने प्रारंभ से ही अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित कीं। आपके द्वारा स्थापित पत्रिका ‘संघशक्ति‘ अनवरत रुप से प्रकाशित हो रही है। इसके अलावा आपने अपने अनुगामियों को हजारों पत्र लिखे, जिनमें से अनेक आज भी धरोहर के रुप में संरक्षित हैं। आपकी अप्रकाशित पुस्तक ’जीवन पुष्प’ शीघ्र ही प्रकाशित करवायी जायेगी। पूज्य श्री का वास्तविक परिचय उनका मानस पुत्र श्री क्षत्रिय युवक संघ है, जिसे अनुभूति से ही समझा जा सकता है।
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Published on 07 Nov 2025