गुहिलोत (सिसोदिया) वंश : उत्पत्ति

Himmat Singh 08 Nov 2025

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भगवान *राम* के पुत्र कुश के वंशज अयोध्या के अंतिम सूर्यवंशी राजा सुमित्र के एक पुत्र कूर्म के वंशज *कछवाह* कहलाये। सुमित्र के दूसरे पुत्र विश्वराज के वंशज *राठौड़* हुए। सुमित्र के तीसरे पुत्र वज्रनाभ के वंशज आगे चलकर *गुहिलोत* कहलाये। राजा सुमित्र के पुत्र वज्रनाभ के वंशक्रम मे महारथी, अचलसेन, कनकसेन, महासेन, विजयसेन, अजयसेन, अमंगसेन, मदसेन, सिहरथ व विजयभूप हुए। विजयभूप अयोध्या से दक्षिण की तरफ अर्थात मगध गए। यहां से इनके वंशज गुजरात गए। विजयभूप के वंश क्रम में पदमादित्य, हरदत्त, सुजासादित्य, सुमुखादित्य, सोमदत्त व शिलादित्य हुए।

शिलादित्य प्रथम (वि सं 663 से 669) वल्लभी गुजरात में राज करते थे शिलादित्य हूणों के आक्रमण से वीरगति को प्राप्त हुए और वल्लभी नष्ट हो गई। उस समय शिलादित्य की रानी पुष्पावती जो गर्भवती थी, वह अम्बा भवानी की यात्रा पर गई हुई थी। रानी को जब वल्लभी पतन की सूचना मिली तो वह अरावली पर्वत की एक गुफा में जाकर रहने लगी। वहाँ गुफा में पुत्र उत्पन्न होने के कारण उसका नाम गुहा या गुहादित्य रखा गया। जिनके वंशज आगे चलकर *गुहिलोत* कहलाए।

गुहिलोत वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।

सिसोदिया
गहलौत राजपूतों की शाखा सिसोदिया हैं। राहप जी के वंशज 'सिसोदा ग्राम' में रहने से यह नाम प्रसिद्ध हुआ। यह ग्राम उदयपुर से 24 किलोमीटर उत्तर में सीधे मार्गं से है। इस वंश का राज्य मेवाड़ प्रसिद्ध रियासतों में है। इस वंश की 24 शाखाएँ हैं। किवदन्ति यह भी है कि सिसोदिया जो ''शीश दिया'' अर्थात ''शीश/सिर/मस्तक'' का दान दिया या त्याग कर दिया। इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी क्षत्रिय वंशजों को सिसोदिया कहा जाता है।

गुहिलोत (सिसोदिया) वंश के गोत्र प्रवरादि

वंश – सूर्यवंशी
गोत्र – वैजवापायन
प्रवर – कच्छ, भुज, मेंष
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयी
गुरु – द्लोचन(वशिष्ठ)
ऋषि – हरित
कुलदेवी – बाण माता
कुल देवता – श्री सूर्य नारायण
इष्ट देव – श्री एकलिंगजी
वॄक्ष – खेजड़ी
नदी – सरयू
झंडा – सूर्य युक्त
पुरोहित – पालीवाल
भाट – बागड़ेचा
चारण – सोदा बारहठ
ढोल – मेगजीत
तलवार – अश्वपाल
बंदूक – सिंघल
कटार – दल भंजन
नगारा – बेरीसाल
पक्षी – नील कंठ
निशान – पंच रंगा
घोड़ा – श्याम कर्ण
तालाब – भोडाला
घाट – सोरम
चिन्ह – सूर्य
शाखाए – 24
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Published on 08 Nov 2025