गुहिलोत (सिसोदिया) वंश : उत्पत्ति
Himmat Singh • 08 Nov 2025
30 Views
About
Hindi
30 Views
शिलादित्य प्रथम (वि सं 663 से 669) वल्लभी गुजरात में राज करते थे शिलादित्य हूणों के आक्रमण से वीरगति को प्राप्त हुए और वल्लभी नष्ट हो गई। उस समय शिलादित्य की रानी पुष्पावती जो गर्भवती थी, वह अम्बा भवानी की यात्रा पर गई हुई थी। रानी को जब वल्लभी पतन की सूचना मिली तो वह अरावली पर्वत की एक गुफा में जाकर रहने लगी। वहाँ गुफा में पुत्र उत्पन्न होने के कारण उसका नाम गुहा या गुहादित्य रखा गया। जिनके वंशज आगे चलकर *गुहिलोत* कहलाए।
गुहिलोत वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।
सिसोदिया
गहलौत राजपूतों की शाखा सिसोदिया हैं। राहप जी के वंशज 'सिसोदा ग्राम' में रहने से यह नाम प्रसिद्ध हुआ। यह ग्राम उदयपुर से 24 किलोमीटर उत्तर में सीधे मार्गं से है। इस वंश का राज्य मेवाड़ प्रसिद्ध रियासतों में है। इस वंश की 24 शाखाएँ हैं। किवदन्ति यह भी है कि सिसोदिया जो ''शीश दिया'' अर्थात ''शीश/सिर/मस्तक'' का दान दिया या त्याग कर दिया। इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी क्षत्रिय वंशजों को सिसोदिया कहा जाता है।
गुहिलोत (सिसोदिया) वंश के गोत्र प्रवरादि
वंश – सूर्यवंशी
गोत्र – वैजवापायन
प्रवर – कच्छ, भुज, मेंष
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयी
गुरु – द्लोचन(वशिष्ठ)
ऋषि – हरित
कुलदेवी – बाण माता
कुल देवता – श्री सूर्य नारायण
इष्ट देव – श्री एकलिंगजी
वॄक्ष – खेजड़ी
नदी – सरयू
झंडा – सूर्य युक्त
पुरोहित – पालीवाल
भाट – बागड़ेचा
चारण – सोदा बारहठ
ढोल – मेगजीत
तलवार – अश्वपाल
बंदूक – सिंघल
कटार – दल भंजन
नगारा – बेरीसाल
पक्षी – नील कंठ
निशान – पंच रंगा
घोड़ा – श्याम कर्ण
तालाब – भोडाला
घाट – सोरम
चिन्ह – सूर्य
शाखाए – 24
Tags:
सिसोदिया