भाटी वंश : उत्पत्ति एवं विस्तार
Himmat Singh • 08 Nov 2025
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श्री कृष्ण के वंशज यदुवंशी भारत और पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों मे निवास करते हैं, ये श्री कृष्ण को अपना मूल पुरुष मानते हैं। भगवान् श्री कृष्ण के बाद उनके कुछ वंशधर हिन्दुकुश के उत्तर में व सिंधु नदी के दक्षिण भाग और पंजाब में बस गए थे और वह स्थान "यदु की डाँग" कहलाया। यदु की डाँग से जबुलिस्तान, गजनी, सम्बलपुर होते हुऐ सिंध के रेगिस्तान में आये और वहां से लंघा, जामडा और मोहिल कौमो को निकाल कर तनौट, देरावल, लोद्र्वा और जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाई।
यदुवंश में कई पीढ़ी बाद (वि. सं. 600 के आस-पास) राजा देवेंद्र हुए। जब नबी मुहम्मद ने दुनिया मे इस्लाम फैलाया, तब राजा देवेन्द्र शोणितपुर के राजा थे, जिसे वर्तमान में मिश्र (Egypt) कहते हैं। इनके चार पुत्र अस्पत, भूपत, गजपत व नरपत हुए।
युवराज अस्पत राजा देवेन्द्र के बाद मिश्र का राजा हुआ, अन्य तीनों अफगानिस्तान की ओर चले आए व वहां राज कायम किया। अस्पत जो मिश्र की गद्दी पर बैठे, उनको मुहम्मद ने जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया, जिनके वंशज चागडा मुगल कहलाए।
राजा गजपत - विक्रम संवत 708 के वैशख सुदी 3 शनिवार रोहिणी नक्षत्र मे गजनी शहर बसाया और किला बनवाया। अपने बडे भाई नरपत जी को गद्दी पर बैठाया और खुद हिन्द सौराष्ट्र की तरफ मैत्रा मां के भक्त थे इसलिए यहां आ बसे। जिनके वंशज चुडासमा, सरवैया और रायजादा कहलाए। जूनागढ मे इन्होने 700 साल राज किया !
जाम नरपत - संवत 683 से 701- बादशाह फिरोजखान को हराकर अपने पुरखो की गद्दी जीत अफगान मे खुद की सत्ता जमाई (इनके वंशज जाडेजा हुए) !
राजा भूपत - गजनी और खुरासन के प्रदेश के बीच भूपत ने राज्य चलाया, इनके वंशज ने पंजाब और सिंध मे राज्य किया (इनके वंशज भाटी हुए)।
(कुछ लोग दंतकथा कहते है कि माता हिंगलाज ने 3 को छुपा दिया और एक अस्पत को सौंपा। नरपत को मुह (जाड) मे छुपाया वो जडेजा कहलाए, गजपत को चुड मे छुपाया वो चुडसमा कहलाए, भूपत को भाथी मे छुपाया वो भाटी कहलाए)
गंधार देश जिसको अब कंधार कहते है, प्राचीन समय में चंद्रवंशी क्षत्रियों के अधिकार में था और चीनी यात्री हुएनसांग सातवीं शताव्दी में उस तरफ से होकर ही भारत में आया था। उसने उस समय हिरात से कंधार तक हिन्दू राजा व प्रजा का होना लिखा है। खुराशान के बादशाह ने महाराज गजपत पर चढाई की, इस युद्ध में खुराशानी बादशाह और महाराज गजपत, दोनों ही काम आये और राजधानी गजनी पर मलेच्छों (मुसलमानों) का अधिकार हो गया। जब गजनीपुर मुसलमानों के हाथ चला गया तो भूपत के पुत्र शालिवाहन पंजाब के दक्षिण की ओर अपने साथियों के साथ बढे और वर्तमान लाहोर के पास शालवाहनपुर नगर बसाया। यहां किले का निर्माण किया जिसका नाम शालकोट रखा। यह नगर वही है जिसे अब शियालकोट कहते है। धीरे-धीरे ये पंजाब के स्वामी होगये। शालिवाहन के बाद उसका बड़ा पुत्र राजा बलंद शालवाहनपुर (शियालकोट) की गद्दी पर बैठा। राजा बलंद और उनके पूर्वजों का वर्तमान पंजाब (भारत-पाकिस्तान), सिंध और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार था। इसके समय में तुर्कों का जोर बहुत बढ़ गया था और उन्होंने शालवाहनपुर ले लिया। इससे बलंद के पुत्रों के अधिकार में केवल सिंधु नदी का पश्चिमी भाग ही रहा।
बलन्द के 6 पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र राजा भाटी (भट्टी) थे, ये बड़े प्रतापी योद्धा थे। इन्होंने कई लड़ाईयां लड़ीं थी। महाराज भाटी के समय तक इस वंश का नाम "यादव वंश" ही था। परन्तु इस प्रतापी राजा के पीछे उनके वंशज "भाटी" नाम से प्रसिद्ध हुए। राजा भट्टी ने भटनेर नगर (वर्तमान हनुमानगढ़) बसाया और अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए भटनेर दुर्ग का निर्माण करवाया। भटनेर दुर्ग को उत्तर भड़ किवाड़ भी कहते हैं, क्योंकि उस समय उत्तर से होने वाले शत्रुओं के आक्रमण को यह दुर्ग रोकता था। अर्थात एक किवाड़ (दरवाजा) की भाति यह अपने शत्रुओं को भारतीय भूमि में प्रवेश होने से रोकता था। इस दुर्ग में भाटी राजवंश का शासन था, तो यहां के भाटी शासक उत्तर से आने वाले आक्रमणकारियों से भीड़ जाते थे। भटनेर दुर्ग को तैमूर लंग ने जीता था और उसने अपनी आत्मकथा तुझके ए तैमूरी में इस दुर्ग के बारे में लिखा की यह दुर्ग बहुत शक्तिशाली दुर्ग है।
राजा भाटी (भट्टी) के बाद उसके वंशज बछराव, विजयराव, मंझणराव, मंगलराव भटनेर के शासक बने। मंगलराव व गजनी के शासक ढुण्ढी के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें मंगलराव पराजित हुआ। पराजित होने के बाद मंगलराव भाटी ने भटनेर से मरुस्थल क्षेत्र में जाकर राज्य कायम किया। मंगलराव के पुत्र केहर ने अपने पुत्र तणु के नाम पर तन्नोट नगर बसाकर तनोटिया देवी की स्थापना की। केहर के दूसरे पुत्र विजयराव चुडाला के पुत्र देवराज ने अपने पिता व दादा की मौत का बदला लेकर वापस हारे हुए क्षेत्रों पर अधिकार कर देवराजगढ़ बसाया, जो बाद में देरावर नाम से जाना गया। देरावर का किला अत्यंत ही मजबूत किला है, जोकि अभी पकिस्तान में है। देवराज ने बाद में देरावर की जगह लोद्रवा को अपनी नई राजधानी बनाया। देवराज ने स्वय को महरावल की उपाधि से विभूषित किया। देवराज के वंशज क्रमशः मुंध, चछु, अनघा , बापाराव, पाहू, सिंघराव व दुसांझ हुए। राव दुसांझ के पुत्र जेसल ने लोद्रवा के पास ही दूसरा किला बनवाया व अपने नाम से नाम से जैसलमेर राज्य की स्थापना की, जोकि 800 वर्षों तक कायम रहा व स्वतंत्रता क बाद इसका विलय भारत संघ में हुआ।
भाटी राजपूत प्रायः राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तरप्रदेश, तथा बिहार के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते है...
राजस्थान – मुख्यतः जैसलमेर के अलावा बाड़मेर, जोधपुर, चित्तोड़, बीकानेर, गंगानगर, चूरू, हनुमानगढ़ जिलों में पाये जाते है l
हिमाचल प्रदेश - जुब्बल, बालसन, थियोगर, कलसी में भी भाटी वंशी राजपूत बसे है।
बिहार - मूंगेर, भागलपुर जिलों में भी यदुवंशी भाटी राजपूत पाये जाते है।
उत्तरप्रदेश- गाजियावाद, गौतमबुद्धनगर, बुलहंदशहर, ककराला (बदायूं) 'यहियापुर (प्रतापगढ़), भरगैं (एटा)
पंजाब – भटिंडा, नाभा, जींद, पटियाला, अंबाला, सिरमौर तक की यह पट्टी भाटी वंश से ही है।
गुजरात - कच्छ और जामनगर में भी भाटी राजपूत पाये जाते है जो सन् 1800 के आस पास जोधपुर से ईडर माइग्रेट हुये थे।
जसावत (जायस) जैसवार यदुवंशी राजपूत- (संभवतः भाटियों की जेसा भाटी शाखा से कुछ लोग माइग्रेट होकर UP में पहुंचे हों, जिनका नाम अपभ्रंश होकर जसावत (जायस) जैसवार हो गया) आगरा जिले व मथुरा में गोवर्धन, फरह छाता क्षेत्र में व मथुरा की मांट तहसील में जायस राजपूत पाये जाते है। बुलदशहर के जेवर व दनकौर क्षेत्र में 52 गांव, हरियाणा में बलभगढ़ तहसील में 52 गांव, इसके अलावा मथुरा दिल्ली, मेरठ, अलीगढ़, गाजियाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, आगरा के कुछ क्षेत्र में भी जेसवार राजपूत पाये जाते हैं। इसके अलावा बरेली फर्रुखावाद, बदायूं, बाराबंकी हमीरपुर में भी पाये जाते है।
भाटी के अलावा जादौन, जाडेजा, चूडास्मा भी यदुवंश की ही शाखाएं हैं, जिनका शासन भारत के विभिन्न भागों में रहा है। इनके आलावा भी कुछ अन्य यदुवंशी राजपूत इक्का दुक्का स्थानों पर भिन्न नामों से मिलते हैं। जैसे...
पोर्च/पौरुष यदुवंशी राजपूत -हाथरस जिले में सिकंदराराऊ, हसायन, गडोरा और मैंडू के पास 30-40 गांव है। फरुखाबाद जिले में भी कम संख्या में ये राजपूत पाये जाते है।
बरगला यदुवंश राजपूत - बुलंदशहर, गुणगां।
बरेसरी यदुवंशी राजपूत - आगरा के समशावाद ओर फतेहाबाद क्षेत्र में 40 के लगभग गांव है।
जाधव यदुवंशी राजपूत- महाराष्ट्र राज्य के देवगिर में।
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