परमार (पंवार) वंश की उत्पति

Himmat Singh 08 Nov 2025

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इतिहास में परमार राजवंश अति प्रसिद्ध रहा है। परमार शब्द का अपभ्रंश होकर पंवार हो गया। इस वंश में राजा विक्रमादित्य व राजा भोज जैसे प्रसिद्ध राजा हुए। जनमानस में कहावत है, “पंवारां पृथ्वी तणी, पृथ्वी तणा पंवार’ !!



परमार अग्नि वंशीय हैं। परमार क्षत्रिय वंश के प्रसिद्ध 36 कुलों में से एक हैं। ये स्वयं को चार प्रसिद्ध अग्नि वंशियों में से मानते हैं। परमारों के वशिष्ठ के अग्निकुण्ड से उत्पन्न होने की कथा परमारों के प्राचीनतम शिलालेखों और ऐतिहासिक काव्यों में वर्णित है। जनमानस में प्रचलित है कि अशोक के पुत्रों के काल मे ईसा पूर्व 232 से 215 मे आबूपर्वत पर ब्रह्महोम (यज्ञ) हुआ। इस यज्ञ में कोई चंद्रवंशी क्षत्रिय शामिल हुआ। ॠषियों ने सामवेद मंत्र से उसका नाम प्रमार (परमार) रखा व इसके वंशज परमार क्षत्रिय कहलाए। डा. दशरथ शर्मा लिखते हैं कि ‘हम किसी अन्य वंश को अग्निवंश माने या न माने परन्तु परमारों को अग्निवंशी मानने में कोई आपत्ति नहीं है।’ सिन्धुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त ने उनके अग्निवंशी होना और आबू पर्वत पर वशिष्ठ मुनि के अग्निकुण्ड से उत्पन्न होना लिखा है। बसन्तगढ़, उदयपुर, नागपुर, अथूणा, हरथल, देलवाड़ा, पारनारायण, अंचलेश्वर आदि के परमार शिलालेखों में भी उत्पति के कथन की पुष्टि होती है। अबुलफजल ने आइने अकबरी में परमारों की उत्पति आबू पर्वत पर महाबाहु ऋषि द्वारा बौद्धों से तंग आने पर अग्निकुण्ड से होना लिखा है।



नामकरण- परमार का शाब्दिक अर्थ शत्रु को मारने वाला होता है। परमार शब्द का अपभ्रंश होकर पंवार हो गया। परमार वाक्पतिकुंज (वि. सं. १०३१-१०५०) के दरबारी कवी पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसहशांक -चरित पुस्तक में अवतरण पाया जाता है जिसका सार यह है की आबू -पर्वत पर वशिष्ठ ऋषि रहते थे। उनकी गो नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए | इस पर वशिष्ठ मुनि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी, जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ जो शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया। जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा। उस वीर पुरुष के वंश का नाम परमार हुआ। राजा भोज परमार के समय के कवि धनपाल ने तिलोकमंजरी में परमारों की उत्पत्ति सम्बन्धी प्रसंग इस प्रकार है….

वाषिष्ठेसम कृतस्म्यो बरशेतरस्त्याग्निकुंडोद्रवो |

भूपाल: परमार इत्यभिघयाख्यातो महिमंडले ||

अधाष्युद्रवहर्षगग्दद्गिरो गायन्ति यस्यार्बुदे |

विश्वामित्रजयोजिझ्ततस्य भुजयोविस्फर्जित गुर्जरा: ||
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Published on 08 Nov 2025