यदुवंशी जादौन राजवंश

Himmat Singh 08 Nov 2025

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ऐतिहासिक तथ्य



यदुवंशियों (जिन्हे सूरसेन वंशी भी कहा जाता था) का राज्य ब्रज प्रदेश में सिकंदर के आक्रमण के समय भी होना पाया जाता है। समय-समय पर शक, हूर्ण, मौर्य, गुप्त और शिथियन आदि ने इन शूरसेन वंशी यदुवंशियों के मथुरा राज्य को दबाया, छीना गया। लेकिन मौका पाते ही यदुवंशी फिर स्वतंत्र हो जाते थे। जब चीनी यात्री हुएनसांग सन 635 ई0 में भारत में आया था उस समय मथुरा का शासक कोई सूद्र था। लेकिन मथुरा के आस पास के क्षेत्र जैसे मेवात, भदानका, शिपथा (आधुनिक बयाना), कमन (8 वीं तथा 9 वीं सदी) के शासक शूरसैनी शाखा के ही थे जिनके नाम भी प्राप्त है। इस काल में मथुरा पर शासन कनौज क्षत्रिय के गुर्जर प्रतिहार शासकों था। इस काल में यदुवंशी उनके अधीनस्थ रहे। लेकिन इस समय में मथुरा के शासक यदुवंशी (जादों) राजा धर्मपाल, भगवान श्रीकृष्ण के 77वीं पीढ़ी में मथुरा के आस पास के क्षेत्र के शासक रहे है। जिनके कई प्रमुख वंशज ब्रह्मपाल, जयेंद्र पाल मथुरा के शासक 9 वीं सदी तक मिलते है। इसके बाद महमूद गजनवी के काल में भी मथुरा/महावन पर (1018 ई.) यदुवंशी राजा कुलचंद का शासन था। जब मोहम्मद गजनवी ने स. 1074 (1018 ई.) ने महावन पर आक्रमण किया था तब वहाँ के राजा कूलचंद (कुल्चंद) से उसका भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में कूलचंद की म्रत्यु हुई थी और उसका विशाल सैन्यवल एवं राज्य महमूद गजनवी ने नष्ट कर दिया था। जो जादों उस भीषण विनाष के बाद भी बच गयें थे, उन्होंने महावन के राजा कुलचंद जादों के भाईबंध विजयपाल के नेतृत्व में मथुरा से हटकर श्रीप्रस्थ (वर्तमान बयाना) में एक नयें जादौन राज्य की स्थापना की थी।



जादौन राजवंश की उत्पत्ति



भगवान श्रीकृष्ण के बाद अर्जुन ने श्री कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ जी को द्वारिका से लाकर पुनः मथुरा का शासक बनाया था। इस यादवों की शाखा (बज्रनाभ जी की शाखा) ने पुनः ब्रज देश में (मथुरा में) अपना राज्य स्थापित कर लिया था। इनके वंशज ही कालान्तर में बयाना, तिमनगढ़ एवं करौली के शासक हुए। इन यादवों का राज्य ब्रज प्रदेश में, सिकन्दर के आक्रमण के समय में भी होना पाया जाता है। समय-समय पर विदेशी आक्रमण कारियों जैसे शक, मौर्य तथा सीथियनों आदि ने यादवों का यह राज्य दबाया, लेकिन मौका पाते ही यादव फिर स्वतंत्र बन जाते थे। मध्यकाल में भी इस प्रदेश के यदुवंशी राजपूतों ने गजनी (काबुल) के तुर्कों एवं मुस्लिम शासकों से भी लम्बा संघर्ष किया। इसी यादव शाखा के वंशजों ने कालान्तर में बयाना, तिमनगढ़ एवं करौली राज्य की स्थापना की थी। यही करौली की राजगद्दी यदुवंशियों यानी भगवान श्री कृष्ण के वंशज माने जाने वाले राजपूतों में आदि (पाटवी) या मुख्य समझी जाती है। करौली की ख्यातों में लिखा है कि विक्रम सं0 936 (ई0 सन 879) में यादव महाराजा इच्छापाल मथुरा का राजा था। उसके ब्रह्मपाल एवं विनयपाल नामक दो पुत्र थे। इच्छापाल के बाद ब्रहमपाल मथुरा का शासक हुआ, ब्रह्मपाल के वंशज जादौन और विनयपाल के वंशज बनाफर यादव कहलाये। ब्रहमपाल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जयेंद्रपाल (इन्द्रपाल) जो भगवान् कृष्ण के 87 वीं पीढ़ी में थे, ये मथुरा की गद्दी पर चतुर्थमास की कार्तिक सुदी एकादसी सम्वत 1023 सन् 966 बैठे। इन्होंने गुर्जर प्रतिहारों के पतन के बाद पहली वार बयाना पर अधिकार किया। इसका देहान्त संवत 1049 कार्तिक सुदी 11 को हुआ। इनके 11 पुत्र हुये जिनमें विजयपाल ज्येष्ठ पुत्र थे।



विजयपाल महाराजा जयेंद्रपाल की मृत्यु के बाद सम्वत 1056 सन् 999 में मथुरा की गद्दी के वारिस हुए। सन् 1018 के लगभग कन्नौज को जीतने के बाद महमूद गजनवी पशिचमोत्तर में बढ़ा जहाँ वह मथुरा लूटने के लिए आरहा था तो राजा विजयपाल यवनों की बजह से अपनी राजधानी सुरक्षित स्थान मानी पहाड़ी पर लेआये। इसी पहाड़ी पर इन्होंने 1043 ई० में विजयमन्दिरगढ़ नाम के एक विशाल दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया था कहा जाता है की ये दुर्ग बाणासुर ने बनवाया था जिसकी पुत्री उषा थी जिसका विवाह अनिरुद्ध जी के साथ हुआ था। उस समय बयाना श्रीपथ, पदमपुरी के नाम से जाना जाता था। राजा विजयपाल के 18 पुत्र थे। इन्होंने 53 वर्ष तक राज्य किया।



उक्त विजयपाल के वंशजों ने ही कालान्तर में कामबन तथा बयाना में यादव राज्यों की स्थापना की थी और वहां अनेक दुर्ग एवं देवालय बनवाएं। शूरसेन शाखा के भदानका / शिपथा (आधुनिक बयाना), त्रिभुवनगिरी (तिमनगढ़) पर कई शासकों जैसे राजा विजयपाल (1043), राजा तिमनपल (1073), राजा कुंवरपाल प्रथम (1120), राजा अजयपाल जिनको महाराधिराज की उपाधि थी (1150) महावन के शासक थे। इनके बाद इनके वंशज हरिपाल (1180), कुंवरपाल द्वितीय (1196) महावन के शासक थे।



तिमनपाल ने "परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर” की उपाधि से नवाजा भी गया था ऐसे प्रमाण मिलते है। तिमनपाल के बाद दो शासक धर्मपाल एवं उसका पासवानिया भाई हरिया (हरिपाल) आपस में लड़ते ही रहे और अधिक समय तक अपनी सत्ता को नियंत्रित नहीं कर सके। अंत में धर्मपाल के पुत्र कुँवरपाल द्वितीय ने हरिपाल को मारकर बयाना एवं तिमनगढ़ पर अपना अधिकार कर लिया। उसके शासनकाल में शहाबुद्दीन गौरी एवं उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1196 ई0 में बयाना पर आक्रमण किया तथा बयाना को हस्तगत करने के बाद तिमनगढ़ पर भी आधिपत्य कर लिया। गौरी ने बहाउद्दीन तुगरिल को तिमनगढ़ का गवर्नर बनाया। उस काल में यह नगर शैव धर्म का प्रमुख स्थान था। दुर्ग एवं राजधानी यवनों के आधिपत्य में आजाने पर राजा कुँवरपाल चम्बलों के बीहड़ जंगलों में चला गया। जादों परिवार इधर-उधर विस्थापित हो गए। कुँवरपाल का कोई भी उत्तराधिकारी उस समय यह दुर्ग एवं अपना खोया हुआ पैतृक राज्य पुनः प्राप्त नहीं कर सके। इस कारण सन 1196 ई0 से 1327ई0 तक इस पुरे क्षेत्र पर यवनों का शासन रहा जिसमें मिया मक्खन का नाम भी आता है। इस अवधि में यवनों ने हिंदुओं पर इस क्षेत्र में काफी धर्म परिवर्तन के लिए दवाव डाले जिसकी बजह से भी काफी यदुवंशी राजपूत इस क्षेत्र से वुभिन्न जगहों पर पलायन कर गये। राजा अर्जुनपाल जी जो राजा कुंवरपाल जी के वंशज थे, उन्होंने 1327ई0 में मंडरायल के शासक मिया मक्खन को मार कर अपने पूर्वजों के सम्पूर्ण क्षेत्र पर पुनः अधिकार किया और सन् 1348 में कल्याणपुरी बसाई, जिसे करौली कहते है। इसके बाद यहाँ यदुवंशियों में स्थिरता आयी।



करौली राज्य की स्थापना



कुँवरपाल के भाई-बन्ध यदुवंशी गोकुलदेव के पुत्र अर्जुनपाल ने ई0 1327 में मण्डरायल के दुराचारी शासक मियां माखन को युद्ध में परास्त करके अपने पूर्वजों के राज्य को पुनः प्राप्त करना शुरू कर दिया। अर्जुनपाल ने मंडरायल के आस-पास के क्षेत्र में पाए जाने वाले मीणों एवं पंवार राजपूतों को युद्ध में हराकर अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और सरमथुरा में 24 गांव वसाए। अर्जुनपाल ने ई0 1348 में कल्याणपुरी नामक नगर वसाया तथा कल्याण जी का मंदिर बनवाया। यही कल्याणपुरी कालान्तर में करौली के नाम से विख्यात हुआ। यह नगर भद्रावती नदी के किनारे स्थित होने के कारण भद्रावती नाम से भी जाना जाने लगा। अर्जुनपाल जी ने कल्याणपुरी के पक्के फर्श का बाजार, मन्दिर, कुएं, तालाब आदि का निर्माण कराया तथा नगर के चारों ओर परकोटा बनवाया। यह नगर उस समय कुल क्षेत्र 9 वर्ग किलोमीटर में स्थापित किया था ।



राजा अर्जुनपाल के उत्तराधिकारी शासक

अर्जुनपाल के बाद विक्रमादित्य, अभयचन्द, पृथ्वीपाल, उदयचंद, रुद्रप्रताप, चन्द्रसेन, गोपालदास, द्वारिकदास, मुकुन्ददास, तथा जगमाल नाम के शासक हुए।अर्जुनपाल के उत्तराधिकारी लगभग साधारण शासक थे। वे पारिवारिक झगड़ों में उलझ गए और इस लिए वे अपने शत्रुओं का सामना करने में दुर्वल हो गए। पृथ्वीपाल के शासनकाल में अफगानों ने तवनगढ़ पर 15 वीं सदी के प्रथम 25 वर्षों में अधिकार कर लिया। यद्धपि उसने ग्वालियर के शासक का आक्रमण विफल कर दिया किन्तु वह मीणाओं का दमन न कर सका जो दुर्जेय बन गए थे ।



महाराज चन्द्रसेन एवं उनका पौत्र राजा गोपालदास -

यादव (आधुनिक जादों) शाखा का 15वां वंशज महाराज चन्द्रपाल एक धर्मपरायण शासक थे। वह मालवा के महमूद खल्जी के आक्रमण का सामना न कर सके जो उनके राज्य में घुस आया और 1454 ई0 में उसकी राजधानी लूटी। विजयी सुल्तान अपने पुत्र फिदवी खां को करौली सौंप कर अपनी राजधानी लौट गया। तिमनगढ़ से निकाले जाने पर चन्द्रपाल उंटगढ़ में सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगा। ऐसा प्रतीत होता है कि वह तथा उसके उत्तराधिकारी अपने सुरक्षित स्थान के निकट थोड़े प्रदेश पर तब तक अधिकार बनाये रहे जब तक अकबर के समय उसके एक उत्तराधिकारी गोपालदास ने उसके क्षेत्र का कुछ भाग प्राप्त कर लिया। गोपालदास अकबर के समय में मुगल सल्तनत के मनसबदार थे। उन्होंने उस क्षेत्र के मीना आदि जनजातियों को दमन किया और उसने मासलपुर, झीरी और बहादुरपुर (भद्रपुर) पर अधिकार किया तथा वजन दुर्ग बनवाये। ई0 1599 में गोपालदास ने अकबर के लिए दौलताबाद का दुर्ग जीत कर सम्राट अकबर को खुश किया जिससे अकबर ने उसे 2 हजारी मनसब और नगाड़ा निशान का सम्मान दिया। मासलपुर के 84 गांव भी गोपालदास ने अपने अधीन कर लिए थे। जब राजा गोपालदास अकबर के दरबार में जाते थे तो उनके आगे-आगे नगाड़ा बजता हुआ चलता था। ई0 1566 में अकबर ने गोपालदास के हाथों आगरा के दुर्ग की नींव रखवाई थी। उन्होंने ही करौली के निकट बहादुरपुर का किला तथा करौली राजमहल में गोपाल मंदिर बनवाया। इस मंदिर में ही दौलताबाद से लाई गई गोपाल जी की मूर्ति स्थापित की गई। यह मूर्ति आज भी मदनमोहन जी के मंदिर में दाई ओर के कक्ष में विराजमान है। गोपाल दास ने मासलपुर तथा चम्बल के किनारे झीरी में महल एवं बाग लगवाए। धर्मपाल दूसरे ने करौली को संवत 1707 में अपनी राजधानी बनाया तथा यहां पर राजमहलों सहित अनेक निर्माण कार्य करवाये। उसकी मृत्यु करौली के राजमहलों में हुई।



गोपालदास जी की रानी (आमेर) जयपुर की राजकुमारी के तीन पुत्र द्वारका दास, मुकुटराव, और तरसुम बहादुर थे। मुकुटराव से मुक्तावत शाखा निकली (जिनके 2 पुत्र हुये इंद्रपाल और जयपाल इनके वंशज सबलगढ़, सरमथुरा और झिरी के जादौन राजपूत है।) तरसम बहादुर से बहादुर यादव नाम की शाखा निकली जिनके वंशज बहादुरपुर व विजयपुर वाले है।



धर्मपाल दूसरे की पूजा देवता के रूप में की जातीहै। उसके बाद रतनपाल, कुँवरपाल दूसरे, गोपाल सिंह हुये। करौली के इतिहास में महाराजा गोपालदास जी के बाद सर्वाधिक प्रभावशाली महाराजा गोपालसिंह जी द्वितीय सं0 1781 में करौली की गद्दी पर बैठे। राजगद्दी पर बैठने के समय ये नाबालिग थे। इससे राज्य प्रबन्ध दो योग्य ब्राह्मणों खंडेराव ओर नवलसिंह के हाथ में था। इन दोनों मंत्रियों ने मरहटों से मित्रता गाँठ करके करौली पर उनका धावा नहीं होने दिया। बड़े होने पर गोपालसिंह जी ने राज-काज अच्छी तरह चलाया। ये बहुत ही बहादुर और हिम्मत वाले थे। जिस किसी ने वगावत की तुरंत उसे दंड दिया ओर राज्य के किलों को मजबूत बनाया। इनके समय करौली राज्य सबलगढ़ से लेकर सिकरवारड तक फैल गया था जो ग्वालियर से 4 किमी दूर सिकरवार की पहाड़ी तक था। इन्होंने अपने समय में झिरी तथा सरमथुरा के मुक्तावतो को अपने पक्ष में कर लिया था। इस प्रकार सं0 1805 तक राज्य में शांति स्थापित करने के बाद करौली के महलों को बढ़ाया तथा राजधानी के चारों ओर लाल पत्थर का पक्का शहरपनाह (परकोटा) निर्माण, गोपालमन्दिर, दीवानेआम, त्रिपोलिया, नक्कारखाना आदि बनवाया। विक्रम संवत 1785 में करौली नरेश गोपाल सिंह दुतीय मदनमोहन जी की मूर्ति को जयपुर नरेश महाराजा सवाई जयसिंह से गोसाई सुबलदास के माध्यम से यहां लाये थे। गोपालसिंह ने संवत 1805 में वर्तमान देवालय का निर्माण कराया, जहां आज भी आठों झांकियों में पूजा एवं दर्शन होते है। यह मूर्ति ब्रजभूमि वृन्दावन जहां अभी भी दनका मन्दिर है से मस्लिम आक्रांताओं (औरंगजेव) से बचा कर जयपुर लाई गई थी। गोविन्द देव, और गोपीनाथजी के साथ इनकी पूजा होती थी। एक किवदंती के अनुसार मदनमोहन जी ने गोपाल सिंह को स्वप्न में करौली लाने के आदेश दिए। जब करौली नरेश ने सपने की बात जयपुर नरेश को सुनाई तो स्वप्न की सच्चाई प्रमाणित करने के लिए उन्होंने आखों पर पट्टी बांध तीनों मूर्तियों में से छांटने की शर्त रखी। बन्द आखों से महाराजा गोपालसिंग ने मदनमोहन जी की मूर्ति को पकड़ लिया और उसे करौली ले आये। मदनमोहन जी का मंदिर भी इन्होंने ही बनवाये थे। बादशाह मुहम्मदशाह ने इनको "माही मरातिव" का रुतबा दिया। इनके समय करौली नगर की काफी उन्नति हुई। नगर में इनकी दर्शनीय छतरी बनी हुई है। ये राजपूताने की बड़ी-बड़ी कार्यवाहियों में उदयपुर, जयपुर तथा जोधपुर के साथ शरीक रहे। इनके राज्य में 697 गांव थे। 13 मार्च सं0 1814 को इनका देहावसान हो गया।



महाराजा गोपाल सिंह जी के बाद क्रमशः महाराजा तुरसनपाल जी मानकपाल जी, हरीबक्स पाल जी, प्रतापपाल जी, नरसिंह पाल जी , भरतपालजी, मदनपाल जी, लक्ष्मनपाल जी, जय सिंहपाल जी, अर्जुनपाल जी दुतीय, महाराजा भंवरपाल जी, भौमपाल जी, गणेशपाल जी करौली की गद्दी पर बैठे। वर्तमान में पूर्व करौली के नरेश गणेशपाल जी के पोते महाराजा श्री कृष्णचंद्र पाल करौली के राज प्रसाद में रहते है। इनके पुत्र युवराजकुमार विवस्वतपाल जी है। विजयपाल के वंशजों ने सन 1348 ई0 में करौली राज्य की स्थापना की। अंग्रेजी शासनकाल तक ब्रज में करौली ही जादोंन का एकमात्र प्रसिद्ध राज्य था, जिसकी परम्परा भगवान श्रीकृष्ण तक जाती थी। देश के स्वाधीन होने पर अन्य राज्यों के साथ करौली भी राजस्थान में विलीन हो गया।



जादौन वंश का वर्तमान में विस्तार

करौली - करौली रियासत जादौन राजवंश की रियासत थी। करौली के पास का पूरा डांग क्षेत्र जिसमें 37 जागीरी ठिकाने थे, जिसके अंतर्गत लगभग 100 गांव आते है ।

धौलपुर जिला – सरमथुरा के पास लगभग 24 गांव कुछ गांव जैसे कंचनपुर आदि भी जादौन के गांव है।

भरतपुर - जिले की बयाना तहसील में लगभग 10 गांव, भरतपुर शहर कें पास 10 गांव, डींग के पास 12 गांव जादौन राजपूतों के है। इसके आलावा कुछ जादौन राजपूतों के ठिकाने चित्तोड़, उदयपुर, भीलवाड़ा, पाली, कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिलों में भी हैं।

मध्यप्रदेश ...

मुरैना जिला- मुरैना जिले में सबलगढ़ का क्षेत्र जिसमे लगभग 40 गांव जादौन के है। जौरा तहसील का जौरा क्षेत्र, सुमावली क्षेत्र, कुछ ठिकाने धौलपुर के बॉडर के पास, भिंड जिले का भदावर क्षेत्र गोहद तहसील, स्योपुर, कुछ ठिकाने इंदौर और उज्जैन में भी है।

उत्तरप्रदेश...

मथुरा - मथुरा जिला में छाता तहसील बरसाना, गोवेर्धन अडींग क्षेत्र में लगभग 52 गांव है जिनमें राया के पास बसे बंदी तथा रसमयी भी सामिल है।

बुलहंशहर - इस जिले में खुर्जा तहसील पहासु ब्लॉक, बुलहंदशहर का क्षेत्र अर्नियां ब्लाक, कुल मिलाकर लगभग 100 गांव जादौन के है । स्याना तहसील में मांकडी गांव है । 2 गौतमबुद्ध नगर - - इस जिले में लगभग 10 गांव जादौन राजपूतों के है।

हापुड़ एवं संम्भल- कुछ गांव हापुड़ (हाड़ौरा ओर खेड़ा) व संभल जिले में मझोला समदपुर, नरौली कुछ गांव है।

इटावा- इस जिले में लगभग 5-10 गांव है ।

हाथरस - इसजिले में लगभग 50-60 गांव जादौन राजपूतों के है जो सासनी , सिकन्दराराऊ हाथरस, विजयगढ़, हसायन क्षेत्र में आते है ।

अलीगढ जिला- इस जिले में धनीपुर ब्लाक, लोधा ब्लाक, खैर ब्लॉक, कुछ गांव इगलास ब्लॉक, गभाना तहसील, बरौली क्षेत्र कुछ गांव अतरौली तहसील | सम्पूर्ण अलीगढ़ जिले में लगभग 300_400 के मध्य जादौन राजपूतों के गांव है।

एटा जिला - इस जिले में जलेसर ब्लाक, अवागढ़ ब्लाक में लगभग 80-100 गांव जादौन राजपूतों के है ।

फीरोजाबाद जिला - इस जिले में केवल नारखी बलॉक व् टूंडला ब्लॉक में लगभग 40 -50 गांव जादौन के है तथा मैनपुरी जिले में भी एक गांव कोठिया है।

आगरा जिला- इस जिले में शमसाबाद और फतेहाबाद क्षेत्र में लगभग 40 गांव एवं किरावली तथा अछनेरा के पास लगभग 30-40 गांव जादौन राजपूतों के है इसके अलावा आगरा के पास जरार क्षेत्र में भी जादौन पाये जाते है ।

इस के अतिरिक्त कुछ गांव जालौन जिले में कालपी के आस-पास, कानपूर, बाँदा, हमीरपुर, महोबा, इटावा हरदोई, इलाहाबाद , सीतापुर, कौशाम्बी जिलों में भी जादौन के बहुत गांव है ।

बिहार – मुंगेर, भागलपुर बांका तथा जमुही जिलों में।
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जादौन
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Published on 08 Nov 2025