चंद्रावत

Himmat Singh 08 Nov 2025

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History Hindi 27 Views

सिसोदे के राणा वंश में भीमसिंह हुए, जिनके एक पुत्र चन्द्रसिंह (चंद्रा) के वंशज चंद्रावत कहलाये। चन्द्रा को आन्तरि परगना जागीर में मिला था। उसके पीछे सज्जनसिंह, कांकनसिंह ओर भाखरसिंह हुए। भाखरसिंह की उसके काका छाजूसिंह से तकरार हुई, जिससे वह आंतरी छोड़कर मिलसिया खेडी के पास जा रहा। उसका बेटा शिवसिंह बड़ा वीर और हट्टा कट्टा था। मांडू के सुलतान हुशंग गोरी ने दिल्ली की एक शहजादी से विवाह किया था। हुशंग के आदमी उस बेगम को लेकर मांडू जा रहे थे। ऐसे में आन्तरि के पास नदी पार करते हुए बेगम की नाव टूट गई। उस समय शिवा ने, जो वहा शिकार खेल रहा था, अपनी जान झोंककर बेगम के प्राण बचाए। इसके उपलक्ष्य में बेगम ने होशंग से शिवा को 'राव' का खिताब और 1400 गाँव सहित आमद का परगना जागीर में दिलाया। उसके पीछे रायमल वहा का स्वामी हुआ। महाराणा कुंभा ने उसे अपने अधीन किया।

उसका पुत्र अचलदास हुआ और उसका उत्तराधिकारी उसके पुत्र प्रतापसिंह का पुत्र दुर्गभान हुआ। उसने रामपुरा शहर (जिला- मंदसौर) बसाया और उसको संपन्न बनाया। अकबर ने चित्तोड़ घेरा तब उसकी मंशा रही की राणाजी का बल तोड़ने के लिए उनके अधीन बड़े बड़े सरदारों को अपने अधीन कर लेना चाहिए। इसी उद्देश्य से उसने आसफ़खान को फ़ौज देकर रामपुरे पर भेजा। उसने शहर को बर्बाद किया, जिसपर दुर्गभान को मेवाड़ की सेवा छोड़कर मुग़ल अधीन होना पड़ा।

राव दुर्गभान का बेटा चंद्रसिंह द्वितीय उसका उत्तराधिकारी हुआ। उसको प्रारम्भ में 700 का मनसब मिला, जो बाद में बढ़ता गया। जहांगीर की उसने बहुत कुछ सेवा की। उसके तीन पुत्र- दुदा, हरिसिंह और रणछोड़दास हुए। उसका ज्येष्ठ पुत्र दुदा उसका उत्तराधिकारी हुआ। वह शाजहान के समय आजमखान के साथ खानजहा लोदी पर भेजा गया और उसका मनसब 2000 जात और 1500 सवार का हुआ। शाहजहान ने उसके बड़े बेटे हठीसिंह को खिलअत 1500 जात और 1000 सवार का मनसब एवं राव का खिताब प्रदान किया। हठीसिंह के निस्संतान होने के कारण राव चन्द्रभान के बेटे रणछोड़दास का बेटा रूपसिंह उसका क्रमानूयाई हुआ। उसके संतान न होने के कारण राव चंदा के बेटे हरीसिंह का पुत्र अमरसिंह उसका उत्तराधिकारी हुआ, जिसको शाहजहान ने 1000 जात और 900 सवार का मनसब, राव का ख़िताब तथा चांदी के सामान के साथ एक घोडा दिया। वह राजपूताने में बड़ा प्रसिद्ध और उदार राजा गिना गया।

उसके पीछे उसका पुत्र गोपालसिंह उसका उत्तराधिकारी हुआ। बाद में वृद्धावस्था के कारण उससे वहा का प्रबंध ठीक होता न देखकर महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ने अपने प्रधान कायस्थ बिहारीदास को फरुक्खसियार के पास भेजकर रामपुरा अपने नाम लिखा लिया और उदयपुर से सेना भेजकर उसे अपने अधिकार में कर लिया तथा राव गोपालसिंह को एक परगना देकर अपना सरदार बनाया। गोपालसिंह के पीछे उसका बड़ा पोता बदनसिंह जागीर का स्वामी हुआ और महाराणा की सेवा में रहा। उसके पुत्र न होने के कारण उसके भाई संग्रामसिंह को वह जागीर मिली। फिर महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ने यह परगना अपने भानेज जयपुर के माधवसिंह को अन्य सरदारो के समान सेवा करने की शर्त पर दे दिया। महाराजा जयसिंह की मृत्यु के पीछे होलकर से लड़ने में अपने को असमर्थ देखकर महाराजा ईश्वरसिंह ने आत्महत्या कर ली। होलकर ने जयपुर पर अपना अधिकार कर लिया। ओर माधवसिंह वहां का राजा हुआ। रामपुरा का परगना, जो महाराणा ने माधवसिंह को सेवा की शर्त पर दिया था उसने फौज खर्च में होलकर को दे दिया। तब से रामपुरा के चंद्रावत होलकर के अधीन हुए।

संग्रामसिंह के बाद लक्ष्मणसिंह, भवानीसिंह, मोकमसिंह द्वितीय, नाहरसिंह, तेजसिंह, किशोरसिंह और खुमाणसिंह हुए। जब से ये परगना होलकर के अधीन हुआ तब से चंद्रावत अपनी भूमी (रामपुरे) को प्राप्त करने का प्रयत्न करते रहे। अंत में तुकोजी होलकर ने रामपुरा 10000 रुपये वार्षिक आय के गाँवों सहित उन्हें दे दिया, जो अब तक उनके अधीन है।

बीकानेर रियासत में जोधासर चंद्रावत सिसोदिया का ताजीमी ठिकाना था। बीकानेर के विश्व प्रसिद्ध महाराजा श्री गंगासिंह जी की माताजी जोधासर के ठाकुर बख्तावर सिंह की पुत्री थी।
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Published on 08 Nov 2025