राजपुताना के पंवार (परमार) राज्य
Himmat Singh • 08 Nov 2025
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History
Hindi
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(1) मण्डोर सावंत
(2) सांभर सिंध
(3) पुंगल गजमल
(4) लोद्रवा भाण
(5) धरधार(अमरकोट क्षेत्र) जोगराज
(6) पारकर(पाकिस्तान मे) हासु
(7) आबू आल्ह व पल्ह
(8) जालंधर (जालौर) भोजराज
(9) किराडू(बाड़मेर) स्वयं धरणीवराह
इतिहासकार नेणसी ने नो कोट सम्बन्धी ऐक छपय प्रस्तुत किया है –
“मंडोर सांबत हुवो ,अजमेर सिधसु |
गढ़ पूंगल गजमल हुवो ,लुद्र्वे भाणसु |
जोंगराज धर धाट हुयो ,हासू पारकर |
अल्ह पल्ह अरबद ,भोजराज जालन्धर ||
नवकोटी किराडू सुजुगत ,थिसर पंवारा हरथापिया |
धरनी वराह घर भाईयां , कोट बाँट जूजू किया ||”
सातवीं शताब्दी में ब्राह्मण हरिश्चंद्र परिहार के पुत्रों ने मंडोर ले लिया। नवी शताब्दी में वराह परमारों से देवराज भाटी ने लोद्रवा ले लिया। सोजत का क्षेत्र हूलों ने छीन लिया। इस प्रकार राजस्थान का परमारों का यह राज्य निर्बल हो गया। परमारों का पुनरुत्थान 11वीं शताब्दी में हुआ जिसमें सर्वप्रथम सिंधुराज परमार का नाम मिलता है।
पीसांगन (अजमेर) राज्य :-- मालवा पर मुसलमानों का अधिकार हो जाने पर राजाभोज के वंशज सांगण ने अजमेर क्षेत्र में अधिकार किया। इस सांगन के नाम से पीसांगन बसाया। सांगन के पुत्र हमीरदेव का वि सं 1532 का शिलालेख है। हमीर के बाद हरपाल व महिपाल हुए। महिपाल (महपा) के वंशज महपावत पंवार कहलाए। महपा महाराणा कुंभा की सेवा में रहा। महपा का पुत्र रघुनाथ व पौत्र करमचंद हुआ। राणा सांगा अपने आपत्तिकाल में करमचंद के पास रहे थे। करमचंद की रानी रामादेवी ने रामासर तालाब वि सं 1580 में बनवाया। करमचंद के बाद क्रमशः जगमाल, मेहाजल व पंचायण हुए। पंचायण वि सं 1589 में चित्तौड़ की रक्षार्थ काम आया। पंचायण के पुत्र मालदेव को राणा उदयसिंह जी ने जहाजपुर की जागीर दी। मालदेव के पुत्र शार्दुल की राजधानी मसूदा थी। इसने अजमेर के निकट श्रीनगर बसाया। शार्दुल परमार के वंशज सुल्तानसिंह के पुत्र जैतसिंह को बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह जी ने जागीर दी। जैतसिंह ने जैतसीसर गांव बसाया। जो सरदारशहर तहसील में है। राजासर, सोनपालसर, नाहरसरा, लूणासर, राणासर, जेतासर आदि पंवार ठिकानों का निकास जैतसीसर से है।
अमरकोट (सिन्ध) राज्य :-- आबू व नो कोटी मारवाड़ के शासक धरणीवराह जिनका समय पाँचवी छटी शताब्दी माना जाता है। धरणीवराह के वंशज सोढ़ हुए। इन्ही सोढ़ाजी के वंशज सोढ़ा परमार कहलाते है। सोढ़ाजी ने सुमरा परमारों की मदद से राताकोट पर अधिकार किया। सोढ़ाजी के बाद रायसी व राणा चाचकदे राताकोट के स्वामी हुए। वि सं 1212 मे चाचकदे सोढ़ा ने सुमरा परमारों को हराकर अमरकोट पर भी अधिकार कर लिया। चाचकदे के बाद क्रमशः जयभ्रम, जसहड़, सोमेश्वर व धारावर्ष हुए। धारावर्ष के बड़े पुत्र दुर्जनशाल अमरकोट के राजा हुए व छोटे पुत्र आसराव ने पारकर पर अधिकार किया। दुर्जनशाल के बाद क्रमशः खींवरा, अवतारदे, थीरा व हम्मीर हुए। हम्मीर ने अमरकोट पर सैय्यदों का आक्रमण विफल किया। हम्मीर के बाद क्रमशः बीसा, तेजसी, कुम्पा, चांपा, गंगा व पत्ता(वीरशाल) गद्दी पर बैठे। पत्ता ने हुमायूं को अमरकोट मे शरण दी। वि सं 1598 मे अकबर का जन्म अमरकोट मे ही हुआ था। पत्ता के बाद चन्द्रसेन भोजराज व राणा ईशरदास राजा हुए। वि सं 1710 मे जैसलमेर के राजा सबलसिंह ने ईशरदास से अमरकोट छीनकर अपने चाचा जयसिंह को दे दिया। इस प्रकार अमरकोट जैसलमेर के अधीन हो गया।
पारकर (सिंध) राज्य :-- अमरकोट के शासक धारावर्ष के छोटे पुत्र आसराव सोढा ने कच्छ भुज के उत्तरी भाग पर अधिकार कर पारकर राज्य की स्थापना की। आसराव के बाद क्रमशः देवराज, सलखा, देवा, खंगार, भीम, बैरसल, भाखरसी, गांगो, अखो, माणकराव, लुणो, देवो आदि पारकर के परमार शासक हुए।
वागड़ (मेवाड़) राज्य :-- मेवाड़ का डूंगरपुर बांसवाड़ा क्षेत्र वागड़ कहलाता है। 10 वीं सदी के उत्तरार्ध में मालवा के परमार राजा वाक्पति के बड़े पुत्र बेरसी द्वितीय तो मालवा के राजा बने व छोटे पुत्र डम्बरसिंह को वागड़ की जागीर मिली। वागड़ में अर्थूणा इन की राजधानी थी। डंबरसिंह के पुत्र धनिक ने उज्जैन में धनिकेश्वर शिवमंदिर बनवाया। धनिक के बाद उसका भतीजा चच्च वागड़ का शासक हुआ। चच्च के बाद डम्बरसिंह का पौत्र कंकदेव राजा हुआ। यह मालवा के राजा सियक द्वितीय (वि सं 1000 से 1030) का समकालीन था। यह सियक द्वितीय के पक्ष में राष्ट्रकूट खोटिंग की सेना से युद्ध करते हुए काम आया। कंकदेव के बाद क्रमशः चण्डप, सत्यराज, लिबराज, मंडलिक व चामुण्डराज गद्दी पर बैठे। इसने वि सं 1136 में अर्थूणा (बांसवाड़ा) में शिवमंदिर बनवाया। इसके पुत्र विजयसिंह का शासन काल वि सं 1165 से 1190 तक का रहा। मेवाड़ के शासक सामंतसिंह ने वि सं 1236 के लगभग वागड़ का राज्य छीन लिया। वागड़ के परमारों के वंशज आजादी के पूर्व तक सौर्थ महीकांठा गुजरात के राजा थे।
आबू (राजस्थान) राज्य :- मालवा के शासक वाकपति (मुंज) उत्पल ने वि सं 1040 में आबू जीतकर अपने छोटे भाई सिंधुराज को यहां का प्रशासक बनाया। फिर मुंज ने अपने पुत्र अरण्यराज को आबू, चंदन को जालोर व अपने भतीजे दुशाल को भीनमाल का राज्य दिया। अरण्यराज के बाद कृष्णराज, महिपाल, धुन्धक आबू के शासक हुए। धुन्धक पर गुजरात के भीमदेव सोलंकी ने आक्रमण किया। भीमदेव के दण्डपति विमलशाह महाजन ने संधि करवाई तथा धुन्धक की आज्ञा से विमलशाह ने आबू पर देलवाड़ा गांव में वि सं 1088 में करोड़ों रुपयों की लागत से भव्य मंदिर बनवाया। धुन्धक की पुत्री लाहिनी ने अपने पति विग्रहराज के मरने पर वशिष्ठपुर बसंतगढ़ में वि सं 1099 में बावड़ी बनवाई। धुन्धक का वंशज धारावर्ष बहुत ही वीर व्यक्ति था। यह एक बाण से तीन भैसें बेध देता था। धारावर्ष के छोटे भाई प्रहलाद ने प्रहलादनपुर बसाया जो आज का पालनपुर गुजरात है। धरावर्ष के बाद सोमसिंह, कृष्णराज व प्रतापसिंह आबू के शासक हुए। प्रतापसिंह ने चंद्रावती नगरी का उद्धार किया। इसके पुत्र विक्रमसिंह के समय वि सं 1368 में आबू का राज्य परमारों से चौहानों ने छीन लिया।
जालौर राजवंश :-- मालवा के परमार राजा वाक्पति (मुंज) उत्पल (वि सं 1030 से 1050) के पुत्र चंदन को जालौर की जागीर मिली। चंदनराज के बाद क्रमशः देवराज, अपराजित, विज्जल, धारावर्ष व विसल जालौर के शासक हुए। इसके बाद जालौर के परमार शासकों की कोई जानकारी नहीं मिलती है।
किराडू राजवंश :-- आबू के परमार राजा कृष्णराज प्रथम के बड़े पुत्र महिपाल तो आबू के राजा हुए व छोटे पुत्र धरणीवराह भीनमाल के शासक हुए। धन्धुक के बाद कृष्णराज द्वितीय व सोच्छराज हुए। सोच्छराज का शासन किराडू तक फैल चुका था। ई. 1080 के करीब सोछराज ने यहाँ अपना राज्य स्थापित किया। यह दानी था और गुजरात के शासक सिन्धुराज जयसिंह का सामंत था। इस सोच्छराज के बाद उदयराज और सोमेश्वर किराडू के शासक हुए। इसके पुत्र सोमेश्वर ने वि. 1218 में राजा जज्जक को परास्त परास्त कर जैसलमेर के तनोट और जोधपुर के नोसर किलों पर अधिकार प्राप्त किया। किराडू के परमार वंशीय आज भी यहाँ राजस्थान के बाड़मेर संभाग में स्थित है।
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