चुड़ासमा-सरवैया-रायजादा
Himmat Singh • 08 Nov 2025
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History
Hindi
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गिरीनगर (गिरनार) के नाम से प्रख्यात जूनागढ प्राचीनकाल से ही आनर्त प्रदेश का केन्द्र रहा है। उसी जूनागढ पर चंद्रवंश की एक शाखा ने राज किया था, जिसे सोरठ का सुवर्णकाल कहा गया है। वो राजवंश है चुडासमा राजवंश, जिसकी अन्य शाखाए सरवैया और रायजादा है।
मौर्य सत्ता की निर्बलता के पश्चात मैत्रको ने वलभी को राजधानी बनाकर सोरठ और गुजरात पर राज किया। मैत्रको की सत्ता के अंत के बाद और 14वीं शताब्दी मे गोहिल, जाडेजा, जेठवा, झाला जैसे राजवंशो के सोरठ मे आने तक पुरे सोरठ पर चुडासमाओ का राज था। मध्यकालीन समय की दृष्टी से ईतिहास को देखे तो यह समय ‘राजपुत शासनकाल’ का सुवर्णयुग रहा। समग्र हिन्दुस्तान मे राजकर्ता ख्यातनाम राजपुत राजा ही थे। इन राजपुत राजाओ मे सौराष्ट्र के प्रसिद्ध और समृद्ध राजकुल चुडासमा राजकुल ने वंथली, जूनागढ पर करीब 600 साल राज किया। इसलिये मध्यकालीन गुजरात के इतिहास मे चुडासमा राजपुतो का अमूल्य योगदान रहा है।
पूर्व इतिहास
यदुवंश में मिस्र (Egypt) के राजा देवेन्द्र हुए। उनके 4 पुत्र हुए 1) असपत, 2)नरपत, 3)गजपत और 4)भूपत। असपत शोणितपुर (मिस्र) की गद्दी पर रहे। गजपत, नरपत और भूपत ने नये प्रदेश को जीतकर विक्रम संवत 708, बैशाख सुदी 3, शनिवार को रोहिणी नक्षत्र मे गजपत के नाम से गजनीपुर शहर बसाया। नरपत ‘जाम’ की पदवी धारण कर वहा के राजा बने, जिनके वंशज आज के जाडेजा है। भूपत ने दक्षिण मे जाके सिंलिद्रपुर को जीतकर वहां उनके वंशजों ने भाटियानगर (भटनेर) बसाया, बाद मे उनके वंशज जैसलमेर के संस्थापक बने जो भाटी है।
गजपत के 15 पुत्र थे। उसके पुत्र शालवाहन, शालवाहन के यदुभाण, यदुभाण के जसकर्ण और जसकर्ण के पुत्र का नाम समा था यही समा के पुत्र चुडाचंद्र थे, जिनके साथ पिता समा का नाम जुड़कर इनके वंशज चूड़ासमा कहलाए। वंथली (वामनस्थली) के राजा वालाराम चुडाचंद्र के नाना थे। वो अपुत्र थे इसलिये वंथली की गद्दी पर चुडाचंद्र को बिठाया। यही से सोरठ पर चुडासमाओ का आगमन हुआ। वंथली के आसपास का प्रदेश जीतकर चुडाचंद्र ने उसे सोरठ नाम दिया। जंगल कटवाकर खेतीलायक जमीन बनवाई। ई.स. 875 मे वो वंथली की गद्दी पर आये। 32 वर्ष राज कर ई.स. 907 मे उनका देहांत हो गया।
वंथली के पास धंधुसर की हानीवाव के शिलालेख मे लिखा है :
|| श्री चन्द्रचुड चुडाचंद्र चुडासमान मधुतदयत |
जयति नृप दंस वंशातस संसत्प्रशासन वंश ||
– अर्थात् जिस प्रकार चंद्रचुड(शंकर) के मस्तक पर चंद्र बिराजमान है, उसी प्रकार सभी उच्च कुल से राजा ओ के उपर चंद्रवंशी चुडाचंद्र सुशोभित है।
चुडासमा/रायझादा/सरवैया वंश की वंशावली:
चुडचंद्र के पश्चात उनका पोत्र मूलराज वंथली की गद्दी पर आया। मूलराज ने सिंध पर चढाई कर किसी समा कुल के राजा को हराया था।
विश्ववराह (ई.स. 915-940) विश्ववराह ने नलिसपुर राज्य जीतकर सौराष्ट्र का लगभग समस्त भू भाग जीत लिया था।
राय ग्रहरिपु (ई.स. 940-982) विश्ववराह का पुत्र, नाम – ग्रहरिपु / ग्रहारसिंह “राय/ राह” पदवी धारन करने वाला प्रथम राजा व कच्छ के राजा जाम लाखा फूलानी का मित्र था। मुलराज सोलंकी राय ग्रहरिपु और जाम लाखा फूलानी समकालिन थे। आटकोट के युद्ध (ई.स. 979) मे मुलराज सोलंकी vs राय और जाम थे। जाम लाखा की मृत्यु उसी युद्ध मे हुई थी, राय ग्रहरिपु की हार हुई और जुनागढ को पाटन का सार्वभौमत्व स्विकार करना पडा।
राय कवांट (ई.स. 982-1003) ग्रहरिपु का बडा पुत्र। तलाजा के उगा वाला उसके मामा थे, जो जुनागढ के सेनापति बने। मुलराज सोलंकी को आटकोट युद्ध मे मदद करने वाले आबू के राजा को उगा वाला पकडकर जुनागढ ले आये, राय कवांट ने उसे माफी देकर छोड दिया। राय और मामा उगा के बीच कुछ मनभेद हुए, इससे दोनो मे युद्ध हुआ और उगा वाला वीरगति को प्राप्त हुए।
राय दियास (ई.स. 1003-1010) अब तक पाटन और जुनागढ की दुश्मनी काफी गाढ हो चुकी थी। पाटन के दुर्लभसेन सोलंकी ने जूनागढ पर आक्रमन कीया। जूनागढ का उपरकोट तो आज भी अजेय है, इसलिये दुर्लभसेन ने राय दियास का मस्तक लानेवाले को ईनाम देने लालच दी। राय के दशोंदी चारन बीजल ने ये बीडा उठाया, राय ने अपना मस्तक काटकर दे दिया।
(ई.स. 1010-1025) – सोलंकी शासन
राय नवघण (ई.स. 1025-1044) राय दियास के पुत्र नवघण को एक दासी ने बोडीदर गांव के देवायत अहिर के घर पहुंचा दिया। सोलंकीओ ने जब देवायत को राय के पुत्र को सोंपने को कहा तो देवायत ने अपने पुत्र को दे दिया, बाद मे अपने साथीदारो को लेकर जुनागढ पर राय नवघण को बिठाया। गजनी ने ई.स 1026 मे सोमनाथ लूटा तब नवघण 16 साल का था, उसकी सेना के सेनापति नागर ब्राह्मन, श्रीधर और महींधर थे। सोमनाथ को बचाते हुए महीधर की मृत्यु हो गई थी। देवायत अहिर की पुत्री और राय नवघण की मुंहबोली बहन जाहल जब अपने पति के साथ सिंध मे गई तब वहां के सुमरा हमीर की कुदृष्टी उस पर पडी। नवघण को यह समाचार मिलते ही उसने पुरे सोरठ से वीरो को ईकठ्ठा कर सिंध पर हमला कर सुमरा को हराया, उसे जीवतदान दिया। (सन 1020)
राय खेंगार (ई.स. 1044-1067) राय नवघण का पुत्र, वंथली मे खेंगारवाव का निर्माण किया।
राय नवघण द्वितीय (ई.स. 1067-1098) पाटन पर आक्रमण कर जीता, समाधान कर वापिस लौटा। अंतिम समय मे अपनी चार प्रतिज्ञाओ को पुरा करने वाले पुत्र को ही राजा बनाने को कहा। सबसे छोटे पुत्र खेंगार ने सब प्रतिज्ञा पुरी करने का वचन दिया, इसलिये उसे गद्दी मिली। नवघण द्वितीय के पुत्र :
• सत्रसालजी – (चुडासमा शाखा)
• भीमजी – (सरवैया शाखा)
• देवघणजी – (बारैया चुडासमा शाखा)
• सवघणजी – (लाठीया चुडासमा शाखा)
• खेंगार – (जुनागढ की गद्दी)
राय खेंगार द्वितीय (ई.स. 1098-1114) सिद्धराज जयसिंह सोलंकी का समकालिन और प्रबल शत्रु। उपरकोट मे नवघण कुवो और अडीकडी वाव का निर्माण कराया। सती राणकदेवी खेंगार की पत्नी थी। सिद्धराज जयसिंह ने जुनागढ पर आक्रमन किया, 12 वर्ष तक घेरा लगाया, लेकिन उपरकोट को जीत ना पाया। सिद्धराज के भतीजे जो खेंगार के भांजे थ़े देशल और विशल वे खेंगार के पास ही रहते थे, सिद्धराज जयसिंह ने उनसे दगा करवाकर उपरकोट के दरवाजे खुलवाये। खेंगार की मृत्यु हो गई, सभी रानीयों ने जौहर किये, रानी रानकदेवी को सिद्धराज अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन वढवाण के पास रानकदेवी सती हुई, आज भी वहां उनका मंदीर है।
(ई.स. 1114-1125) – सोलंकी शासन
राय नवघण 3 (ई.स. 1125-1140) अपने मामा जेठवा नागजी और मंत्री सोमराज की मदद से जूनागढ जीतकर पाटन को खंडणी भर राज किया।
राय कवांट 2 (ई.स. 1140-1152) पाटन के कुमारपाल से युद्ध मे मृत्यु।
राय जयसिंह (ई.स. 1152-1180) संयोगिता के स्वयंवर मे गये थे, जयचंद को पृथ्वीराज के साथ युद्ध मे सहायता की थी।
राय रायसिंहजी (ई.स. 1180-1184)
राय महीपाल (ई.स. 1184-1201)
राय जयमल्ल (ई.स. 1201-1230)
राय महीपाल 2 (ई.स. 1230-1253) ई.स.1250 मे सेजकजी गोहिल मारवाड से सौराष्ट्र आये, राय महिपाल के दरबार मे गये। राय महीपाल का पुत्र खेंगार शिकार पर गया, उसका शिकार गोहिलो की छावनी मे गया, इस बात पर गोहिलो ने खेंगार को केद कर उनके आदमियो को मार दिया। राय ने क्षमा करके सेजकजी को जागीरे दी, सेजकजी की पुत्री का विवाह राय महीपाल के पुत्र खेंगार से किया।
राय खेंगार 3 (ई.स. 1253-1260) अपने पिता की हत्या करने वाले एभल पटगीर को पकड कर क्षमादान दीया जमीन दी।
राय मांडलिक (ई.स. 1260-1306) रेवताकुंड के शिलालेख मे ईसे मुस्लिमो पर विजय करनेवाला राजा लिखा है।
राय नवघण 4 (ई.स. 1306-1308) राणजी गोहिल (सेजकजी गोहिल के पुत्र) राय नवघण के मामा थे। झफरखान के राणपुर पर आक्रमण करने के समय राय नवघण मामा की सहायता करने गये थे। राणजी गोहिल और राय नवघण उस युद्ध वीरोचित्त मृत्यु को प्राप्त हुए। (ये राणपुर का वही युद्ध है जिसमे राणजी गोहिल ने मुस्लिमो की सेना को हराकर भगा दिया था, लेकिन वापिस लौटते समय राणजी के ध्वज को सैनिक ने नीचे रख दिया और वहा महल के उपर से रानीयो ने ध्वज को नीचे गीरता देख राणजी की मृत्यु समजकर कुवे मे गीरकर जौहर किया ये देख राणजी वापिस अकेले मुस्लिम सेना पर टूट पडे और वीरगति को प्राप्त हुए)।
राय महीपाल 3 (ई.स. 1308-1325) सोमनाथ मंदिर की पुनःस्थापना की।
राय खेंगार 4 (ई.स. 1325-1351) सौराष्ट्र मे से मुस्लिम थाणो को खतम किया, दुसरे रजवाडो पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
राय जयसिंह 2 (ई.स. 1351-1373) पाटन से झफरखान ने जुनागढ मे छावनी डाली, राय को मित्रता के लिये छावनी मे बुलाकर दगे से मारा। राय जयसिंह ने तंबु मे बैठे झफरखां के 12 सेनापतिओ को मार दिया, उन सेनापतिओ की कब्र आज जुनागढ मे बाराशहीद की कब्र के नाम से जानी जाती है।
राय महीपाल 4 (ई.स. 1373) झफरखाँ के सूबे को हराकर वापिस जूनागढ जीता, सुलतान से संधि करी।
राय मुक्तसिंहजी (भाई) (ई.स. 1373-1397) राय महिपाल का छोटा भाई , दुसरा नाम – राय मोकलसिंह।
राय मांडलिक 2 (ई.स. 1397-1400)
राय मेंलंगदेव (ई.स. 1400-1415) मांडलिक का छोटा भाई। वि.सं. 1469 ज्येष्ठ सुदी सातम को वंथली के पास जुनागढ और गुजरात की सेना का सामना हुआ, राजपुतो ने मुस्लिमो को काट दिया, सुलतान की हार हुई। इसके बाद अहमदशाह ने खुद आक्रमण किया। राजपुतो ने केसरिया (शाका) किया, राजपुतानीओ ने जौहर किये, राय के पुत्र जयसिंह ने नजराना देकर सुलतान से संधि की।
राय जयसिंहजी 3 (ई.स.1415-1440) गोपनाथ मंदिर को तोडने अहमदशाह की सेना जब झांझमेर आयी, तब झांझमेर वाझा (राठौर) ठाकुरो ने उसका सामना किया, राय जयसिंह ने भी अपनी सेना सहायतार्थ भेजी थी। ईस लडाई मे भी राजपुत मुस्लिमो पर भारी पडे, सुलतान खुद सेना सहित भाग खडा हुआ।
राय महीपाल 5 (ई.स.1440-1451) पुत्र मांडलिक को राज सौंपकर संन्यास लेकर गिरनार मे साधना करने चले गये।
राय मांडलिक 3 (ई.स. 1451-1472) जुनागढ का अंतिम हिन्दु शासक। सोमनाथ का जिर्णोद्धार कराया। ई.स.1472 मे गुजरात के सुल्तान महमुद शाह (बेगडा) ने जूनागढ पर तीसरी बार आक्रमण किया। जूनागढ की सेना हारी, राजपुतो ने शाका और राजपुतानीयो ने जौहर किये। दरबारीओ के कहने पर राय मांडलिक युद्ध से निकलकर कुछ साथियो के साथ ईडर जाने को निकले, ताकि कुछ सहाय प्राप्त कर सुल्तान से वापिस लड सकें। सुल्तान को यह बात पता चली, उसने कुछ सेना मांडलिक के पीछे भेजी और सांतली नदी के मेदान मे मांडलिक की मुस्लिमो से लडते हुए मृत्यु हुई।
राय मांडलिक की मृत्यु के पश्चात जूनागढ हंमेशा के लिये मुस्लिमो के हाथ मे गया। मांडलिक के पुत्र भूपतसिंह के व्यक्तित्व, बहादुरी व रीतभात से प्रभावित हो महमुद ने उनको बगसरा (घेड) की चौरासी गांवो की जागीर दी, जो आज पर्यंत उनके वंशजो के पास है।
चुडासमा के गांव
चुडासमा के गांव (भाल विस्तार, धंधुका )
तगडी 2. परबडी 3. जसका
4. अणियारी 5. वागड 6. पीपळी
7. आंबली 8. भडियाद 9. धोलेरा
10. चेर 11. हेबतपुर 12. वाढेळा
13. बावलियारी 14. खरड 15. कोठडीया
16. गांफ 17. रोजका 18. उचडी
19. सांगासर 20. आकरू 21. कमियाळा
22. सांढिडा 23. बाहडी (बाड़ी) 24. गोरासु
25. पांची 26. देवगणा 27. सालासर
28. कादिपुर 29. जींजर 30. आंतरिया*
31. पोलारपुर 32. शाहपुर 33. खमीदाणा, (जुनावडा मे अब कोइ परिवार नही रहेता)
जो चुडासमा को उपलेटा-पाटणवाव विस्तार की ओसम की चोराशी राज मे मीली वो लाठीया और बारिया चुडासमा के नाम से जाने गए..
बारिया चुडासमा के गांव
बारिया 2. नवापरा 3. खाखीजालिया
4. गढाळा 5. केराळा 6. सवेंतरा
7. नानी वावडी 8. मोटी वावडी 9. झांझभेर
10. भायावदर 11. कोलकी
लाठिया चुडासमा के गांव
लाठ 2. भीमोरा 3. लिलाखा
4. मजीठी 5. तलगणा 6. कुंढेच
7. निलाखा
चुडासमा के अन्य गांव
लाठीया खखावी 2. कलाणा 3. चित्रावड
4. चरेल (मेवासिया चुडासमा) 5. बरडिया
रायजादा यदुवंशी
जूनागढ़ के अंतिम राजा राय मांडलिक के पुत्र भूपतसिंह और उनके वंशज ‘रायजादा’ कहलाये (रायजादा मतलब राय का पुत्र)।
रायजादा भूपतसिंह (ई.स. 1471-1505) के वंशज आज सौराष्ट्र प्रदेश मे रायजादा राजपूत कहलाते है। चुडासमा, सरवैया और रायजादा तीनो एक ही वंश की तीन अलग अलग शाख है। तीनो शाख के राजपूत खुद को भाई मानते है। अलग अलग समय मे जुदा पडने पर भी आज एक साथ रहते है।
रायजादा के गांव
सोंदरडा 2. चांदीगढ 3. मोटी धंसारी
4. पीपली 5. पसवारिया 6. कुकसवाडा
7. रुपावटी 8. मजेवडी 9. चूडी- तणसा के पास
10. भुखी – धोराजी के पास 11. कोयलाणा (लाठीया)
सरवैया यदुवंशी
चूड़चंद्र के वंशज रागारिया ने गिरनार (जूनागढ़) में अपना शासन स्थापित किया। कहा जाता है कि रागारिया और उनके वंशज सर (तीर) चलाने में बड़े तेज थे। इस कारण इनके वंशज सरवैया यदुवंशी कहलाते है। अभी गुजरात राज्य के कुछ जिलों में हैं। गिरनार के वीर सरवैया केवाठ व अनंतराय सांखला की कथा काफी प्रसिद्ध है। मुख्य रूप से गुजरात में पाए जाते है। यह चूड़ासमा वंश की शाखा हैं। सरवैया राजपूत भारत की आजादी तक (जब जागीरदारी थी) कई जागीरों के जागीरदार थे। जैसे वासवद, भड़ली, चीतल, भखलका।
वेजलकोट का किला जो रावल नदी के पूर्वी तट पर गिरनार में स्थित है और अब एक पुरातात्विक स्थल है। इसका नाम इसके संस्थापक सरवैया वेजोजी के नाम पर ही है। जिन्होंने वहां से सुल्तान महमूद बेगडा की सेना के साथ लड़ाई लड़ी थी। इस तथ्य का उल्लेख करने वाले कुछ पुरातात्विक साक्ष्य और शिलालेख पाए गए हैं। जैसे हथसानी और वेजलकोट के खंडहरों में पाए गए अन्य शिलालेख।
स्वतंत्रता के समय, जेसर, हथसानी, दाथा और आस-पास की रियासतों पर सरवैया राजपूतों का शासन था। जेसर राज्य और दाथा रियासत को अन्य रियासतों के साथ भारत संघ में मिलाकर संयुक्त काठियावाड़ राज्य बनाया गया।
सरवैया के गांव
सरवैया (केशवाला गांव भायात)
केशवाला 2. छत्रासा 3. देवचडी
4. साजडीयाली 5. साणथली 6. वेंकरी
7. सांढवाया 8. चितल 9. वावडी
सरवैया (वाळाक के गांव)
हाथसणी 2. देदरडा 3. देपला
4. कंजरडा 5. राणपरडा 6. राणीगाम
7. कात्रोडी 8. झडकला 9. पा
10. जेसर 11. चिरोडा 12. सनाला
13. राजपरा 14. अयावेज 15. चोक
16. रोहीशाळा 17. सातपडा 18. कामरोल
19. सांगाणा 20. छापरी 21. रोजिया
22. दाठा 23. वालर 24. धाणा
25. वाटलिया 26. सांखडासर 27. पसवी
28. मलकिया 29. शेढावदर
सरवैया के और गांव जो अलग अलग जगह पर हे
नाना मांडवा 2. लोण कोटडा 3. रामोद
4. भोपलका 6. खांभा (शिहोर के पास) 7. विंगाबेर. 8. खेडोई
खागर/खंगार यदुवंशी
खागर यदुवंशी जूनागढ़ के प्रसिद्ध खंगार द्वितीय के वंशज है। उनके पूर्वज 1200 ई० के लगभग गुजरात से चलकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बस गए। कहा जाता है कि खंगार क्षत्रिय राव खेतसिंह खंगार पृथ्वीराज चौहान के सामन्त थे। बाँदा झांसी, हमीरपुर, जालौन में है।
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