जाडेजा वंश

Himmat Singh 08 Nov 2025

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History Hindi 31 Views

जडेजा राजवंश गुजरात के कच्छ व सौराष्ट्र के इलाके में राज करने वाला एक झुझारू राजवंश है। जडेजा राजवंश चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं व इनकी उत्पत्ति यदुकुल से मानी जाती है। जडेजा, चुडासमा, भाटी, जादौन सभी यदुवंश की अलग अलग शाखाये है जो भिन्न भिन्न समय पर यदुवंश से निकली है। जडेजा वंश गुजरात का सबसे बड़ा राजपूत वंश माना जाता है। जडेजा राजपूतों के सौराष्ट्र में लगभग 700 गाँव बसे हुए है और लगभग 2300 गाँवो पर आजादी के समय इनका शासन रहा है। जडेजा मूलरूप से यदुवंश की शाखा है जोकि चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं।

यदुवंश में कई पीढ़ी बाद (वि. सं. 600 के आस-पास) राजा देवेंद्र हुए। जब नबी मुहम्मद ने दुनिया मे इस्लाम फैलाया, तब राजा देवेन्द्र शोणितपुर के राजा थे, जिसे वर्तमान में मिश्र (Egypt) कहते हैं। इनके चार पुत्र अस्पत, भूपत, गजपत व नरपत हुए। अस्पत के वंशज मुसलमान हो गए, भूपत के वंशज भाटी हुए, गजपत के वंशज चुड़ासमा हुए, व नरपत के वंशज जाड़ेजा हुए।



राजा देवेंद्र के पुत्र नरपत ने संवत 683 से 701- बादशाह फिरोजखान को हराकर अपने पुरखो की गद्दी जीत अफगान मे खुद की सत्ता जमाई व जाम की उपाधि धारण की ! नरपत के वंशज का वंशक्रम निम्नानुसार चला....
जाम सामत(समा) (संवत 701-758)- फिरोज खान के शहजादे ने तुर्किस्तान से मुस्लिम राजाओ का सहारा लेकर गजनी वापस जीत ली। सामत अय्याश थे, तो युद्ध की तैयारी ना पाए और थोडे लस्कर के साथ लाहौर मे गद्दी डाली और सिंध मे राज बढाया। जिनके वंशज सिंध मे सामा कहलाए।
जाम जेहो (संवत 757 से 831)- खलीफा उमर से लडाई हुई और जीते !
जाम नेतो (831 से 855)- खलीफा वालिफ ने सिंध पर हमला कर अपनी सत्ता जमाई, सब राजाओ ने लगान दी, जाम नेता ने नही दी।
जाम नोतीयार (866-870)- इरानी बादशाह ममुरासिद चित्तौड से हारकर वापस आ रहा था, उनको लूटा और बंदी बनाया।
जाम गहगिर (ओधर) (870-881)- रोमन के साथ व्यापार संबंध बढाये !
जाम ओथो (881-898) - कश्मीर के राजा जयपीड की बेटी की शादी इनके अपने बेटे के साथ हुई थी।
जाम राहु (898-918)- कन्नौज के राजा माहिरभोज और अनंग पिड कश्मीर के साथ रिश्ते बढाए।
जाम ओढार (संवत 931-942) - काबुल, कंदहार, पेशावार मे फैले हिन्दू राजाओ को संघठित कर मुस्लिम को रोका था।
जाम लखियार भड (संवत 942-956)- नग्गर सैमे बसाया और वहां राजगद्दी बनायी, जो हाल नगरठाठे के नाम से पहचाना जाता है ।
जाम लाखो धूरारो (संवत 957-986)- अपने दोनो पैर से घोडे को झूलाते थे काफी बलवान राजा थे, पतगढ के राजा वीरम चावडा की बेटी से 4 पुत्र हुए- मोड, वैराया, संध और ओथो और खैरागढ के राजा सूर्य सिंह उफर श्रवण की बेटी चन्द्रकुवंर से 4 पुत्र- उन्नड, जीहो, फूल और मानाई !
जाम उन्नड (986) - सिंध की गदी पर आये और मोड़ ने अपने मामा की गदी पटगढ़ छीन ली और उनका वंश कच्छ में चला , इन्होने केरा कोट का अजोड़ किल्ला बन्धवाया। फूल के वंश में जाम लाखो फूलाणि हुवे जो आज भी पुरे गुजरात में सुप्रसिद्ध हे। जो अटकोट में भीमदेव सोलंकी के सामने युद्ध में काम आये। इनको पुत्र न होने से उनका भतीजा जाम पुनवरो गद्दी पर आया जिसने पदरगढ़ का कछ कला का विशाल किला बनवाया) !

संवत 986 से 1182 तक - जाम उन्नड, जाम समेत उर्फ़ समो, जाम काकू, जाम रायघन, जाम प्रताप उर्फ पली, जाम संधभड़ हुए।

जाम जाड़ो- (1182-1203) इनके बाद ही वंशज 'जाड़ेजा' कहलाये। इनको पुत्र न होंने से अपने भतीजे लाखो को गदी पर बिठाया बाद मे उनको पुत्र हुवा जिसका नाम धयोजि था।

जाम लाखो जडेजा- (1203-1231) धयोजी का पक्ष ज्यादा मजबूत होने से और झगडा होने से जाम लाखों अपने भाई के साथ कछ की और आ बसे और अलग अलग राजाओ को हराकर कछ में सत्ता जमायी। उधर सिंध में धयोजी निर्वंश गुजर गए।

जाम रायघनजी- (1331) इनके ४ पुत्र हुवे जाम गजनजी (बारा की जागीर दी), देदोजी (कंथकोट अंजार वागड़ वगेरा दिया), होथीजी (गजोड़ की जागीर दी) और आठो जी (जिनसे कछ भुज की साख चली और राज इनको दिया)।

जाम श्री रावल जाम- (1561) यादवकुल नरेश अजेय राजा, नवानगर (जामनगर) बसाया। काफी युद्ध लड़े और काठियावाड़ में अपनी सता जमायी। मिठोय का महान युद्ध जीत काठियावाड़ के सभी राजाओ को हराया। छोटे भाई हरध्रोल जी से ध्रोल राज्य की शाखा चली) !

जाम श्री विभाजी (1618-1625) तमाचन का युद्ध ,बादसाह खुर्रम के साथ का युद्ध ,जूनागढ़ नवाब को हराना, महान राजवी जाम सत्रसल को गद्दी और दूसरे बेटे भानजी को कलावड दिया और उनसे खरेदी और वीरपुर का राजवंश चला।

जाम श्री सत्रसाल उर्फ सत्ताजी (1625-1661)- इनके समय भूचर मोरी व नवानगर के प्रसिद्द युद्ध हुए।



*भूचर मोरी का प्रसिद्द युद्ध*

महाभारत काल के बाद इतिहास के दो सबसे बड़े युद्ध भी जडेजा वंश के नेतृत्व में लड़े गए। गुजरात के आखरी सुल्तान मुजफ्फर शाह (तृतीय) जो मुगल बादशाह अकबर की क़ैद से फ़रार होकर नवानगर के जाम सताजी जडेजा की शरण में थे। जब अहमदाबाद के मुग़ल सेनापति ने मुज़फ़्फ़र शाह को लौटाने को कहा तब सताजी ने क्षत्रिय धर्म का हवाला देते हुए शरणागत को लौटाने से इनकार कर दिया। जुलाई 1591 (विक्रम संवत 1648) में मुग़ल और काठियावाड़ी रियासतों (जिनमें, नवानगर, ध्रोल, मोरवी, जूनागढ़, कुण्डला, आदि शामिल थे) की संयुक्त सेनाएँ, ध्रोल राज्य में भूचर मोरी नामक स्थान पर मिली। काठियावाड़ की सेना में जूनागढ़ और कुण्डला राज्य की सेनाएँ भी शामिल थीं, जिन्होंने आखिरी समय में नवानगर का साथ छोड़ दिया था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, दोनों पक्षों ने बड़ी संख्या में घटनाओं का सामना किया और अंत में मुगल सेना की जीत हुई। भूचर मोरी और नवानगर के युद्ध में जडेजा वीरों ने डट कर विदेशीयों का मुकाबला किया। ये युद्ध क्षत्रियो की वीरता व रण कौशल का उत्तम उद्धारण है जो कभी भुलाये नहीं जाने चाहिए। भूचर मोरी का युद्ध सौराष्ट्र के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध सरनागत रक्षा के लिए राजपूत धर्म का उदाहरण है।



*जडेजा शाषित पूर्व राज्य व ठिकाने*

1. भुज (923 गांव) 19 तोपों की सलामी
2. नवानगर (741 गांव) 15 तोपों की सलामी

3. मोरवी (141 गांव) 11 तोपों की सलामी

4. गोंडला (127 गांव ) 11 तोपों की सलामी
5. ध्रोल (71 गांव) 11 तोपों की सलामी
6. राजकोट (64 गांव) 9 तोपों की सलामी



जडेजा राजपूत इसके अतरिक्त वीरपुर, कोटड़ा (सांगणी), कोटड़ा (देवानी), मालिया मेगनीं, गवरोदड़पाल, धरडा, जालिया भाडुवा, राजपुरा, कोठरिया, शायर, लोधी, बडाली, खीरसरा, सीसांग चण्डली, बीरबाव, काकसी, आली, बडाली, मोवा, प्राफ़ा, सातोदड ,बावड़ी, मूली, लादेरी, सांतलपुर में हैं।
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Published on 08 Nov 2025